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जरा याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर ना आए ,तब से अब का कारगिल !!

कुणाल भारती
राजनितिक और सामाजिक विश्लेषक 
कारगिल जम्मू एवं कश्मीर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है| वैसे यह स्थान मुख्य रूप से बौद्ध पर्यटन केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है, जहाँ कई प्रसिद्ध बौद्ध मठ स्थित है| इतिहास के पन्नों का अगर पलट के देखा जाए तो प्राचीन भारत में कारगिल सिल्क(रेशम) व्यापार का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था| काराकोरम रेंज का यह प्रसिद्ध भूभाग पर एक वक्त बौद्ध शासकों का राज हुआ करता था| बर्फ से ढँके होने के कारण यहाँ केवल 6 महीने  आवागमन संभव है| कारगिल चार घाटियों का प्रवेश द्वार है और इसलिए सामरिक रूप से भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है| 1947 के भारतीय विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान की कुदृष्टि इस भूभाग पर हमेशा ही रही है| परन्तु, लद्दाख क्षेत्र में होने की वजह से यह भूभाग भारत-पाकिस्तान के तनावों से उतना प्रभावित नहीं रहा, जितना कश्मीर घाटी रहा है| 

वक्त के बदलते स्वरूप के साथ साथ यहां का भी परिस्थिति बदली| कभी शांति का प्रतिक कारगिल अब 18,000 फुट उचाई वाला जंग के मैदान में तब्दील हो चूका है| पाकिस्तानी सेना लद्दाख में घुसने के लिए हमेशा से कारगिल को अपना निशाना बनाते आई है| 1999 के भारत-पाक कारगिल युद्ध के दौरान पूरी दुनिया की नजर इस अनजाने जगह पर पड़ी|  पाकिस्तान ने एक सुनिश्चित योजना के तहत कारगिल में घुसपैठ की ताकि श्रीनगर से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग को भारत से अलग-थलग किया जा सके| कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है| यह युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ| पता नहीं शौर्य और पराक्रम की कितनी कहानियां आज भी कारगिल की इन हसीन वादियों और पहाड़ियों में गूँज रही है| आज भारत का बच्चा-बच्चा कारगिल का नाम सुन गौरवशाली महसूस करता है|  
वैसे तो पाकिस्तान ने इस युद्ध की शुरूआत 3 मई 1999 को ही कर दी थी जब उसने कारगिल की ऊँची पहाडि़यों पर 5,000 सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था| इस बात की जानकारी जब भारत सरकार को मिली तो सेना ने पाक सैनिकों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय चलाया| पाकिस्तान ने दावा किया कि लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेज़ों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी| भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और धीरे-धीरे अपने पराक्रम और बलिदान से पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया|

परमाणु शक्ति बनने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ यह पहला सशस्त्र संघर्ष था| असल में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने पड़ोसियों से अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की| दोस्ती, अमन और भाईचारे की नई मिसाल रखने के लिए पाकिस्तान के साथ लाहौर बस सेवा स्थापित किया| परंतु वे लाहौर के गर्म जोशी में पाकिस्तान के घटिया चरित्र भूल गए थे| अटल बिहारी वाजपेई दोस्ती की एक नई इबादत लिखने की कोशिश कर रहे थे, तो उधर पाकिस्तान कारगिल युद्ध की तैयारी कर रहा था| कारगिल घुसपैठ का सारा विषाक्त पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ का बिछाया हुआ था| जनरल परवेज मुशर्रफ का इरादा एकदम साफ था कि पहले आतंकवादियों के रूप में पाकिस्तानी सेना को नियंत्रण रेखा के पार भारत में भेजा जाए तथा अगर भारत दूसरा मोर्चा खोलने की कोशिश करें तो भारत पर परमाणु हमला किया जा सके| शायद इसी खतरे को भांपते हुए भारत सरकार ने युद्ध के दिनों में यह स्पष्ट कर दिया था कि कुछ भी हो जाए भारतीय सेना नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान में नहीं घुसेगी| परमाणु शक्तियों के मध्य जंग मानवता के लिए ही घातक सिद्ध हो सकता था|

युद्ध की घोषणा के तत्पश्चात जून महीने में भारतीय वायु सेना ने ऑपरेशन सफेद सागर शुरू किया| गौरतलब हो कि इतनी ऊंचाई पर दुनिया में पहली बार लड़ाई लड़ी जा रही थी और उन परिस्थितियों में भी भारतीय वायु सेना ने जांबाजी का वह कारनामा कर दिखाया जिसे आज तक भूला नहीं जा सकता है| भारत में पहली बार वायु सेना ने लेजर गाइडेड बम का इस्तेमाल किया, जिसे पहाड़ों में छुपे घुसपैठियों पर आसानी से हमला किया जा सके|

उस दौर में टेलीविजन के जरिए कारगिल हर घर पहुंच चुका था| शायद यह टेलीविजन युग की पहली भारत-पाकिस्तान लड़ाई थी| सम्पूर्ण देश कठिन हालत में भारतीय फौजियों को न सिर्फ लड़ते देख रहा था, बल्कि उनके बलिदान के बाद की अंतिम शव यात्रा और उनके घर-परिवार-गांव की भावनाओं को भी आत्मसात कर रहा था|  इस वजह से कारगिल की लड़ाई सिर्फ कारगिल तक सीमित नहीं रहकर लद्दाख से लेकर केरल तक और कच्छ से लेकर कामरूप तक पहुंच गया| पूरा देश कारगिल से जुड़ गया था| उधर पाकिस्तान अपने अवश्यंभावी हार को देखकर मानसिक दिवालिया होने लगा था और अपने शहीदों के शव को कबूल करने से भी इनकार कर दिया|

वैसे तो कारगिल में लड़ा हर जवान इस युद्ध का नायक था, हर जवान खूब वीरता से लड़ा, जीता और देश के लिए शहादत दी| परंतु कैप्टन विक्रम बत्रा ,लेफ्टिनेंट मनोज पांडे, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव तथा राइफलमैन संजय कुमार को युद्ध के पश्चात परमवीर चक्र दिया गया| 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स के जवान कैप्टन विक्रम बत्रा ने शौर्य और पराक्रम की एक नई कहानी लिखी| द्रास के पॉइंट 4875 पर कठिन परिस्थितियों में विक्रम बत्रा ने जीत हासिल कर तिरंगा लहराया, परंतु वह जीत का जश्न मनाने के लिए जीवित नहीं रहे| उन दिनों कैप्टन विक्रम बत्रा की प्रसिद्ध टैगलाइन "यह दिल मांगे मोर" आज भी हर एक हिंदुस्तानी के जेहन में जीवित है| कैप्टन विजयंत थापर की अपने परिवार को लिखें अंतिम खत की बातें आज भी हर हिंदुस्तानी को भावुक कर दिया करती हैं| 
सौरभ कालिया की वीरता की कहानी आज भी कारगिल की पहाड़ियों में गूंजती है| दुश्मन सौरभ और उनके साथियों से भारतीय सेना की खुफिया जानकारी जानना चाहता था, इसलिए उसने लगभग 22 दिनों तक अपनी हिरासत  में रखकर कठोरतम यातनाएँ दी| सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए सौरभ कालिया के कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया, उनकी आंखें निकाल ली गई, हड्डियां तोड़ दी गईं, यहां तक की उनके निजी अंग भी दुश्मन ने काट दिए थे| लाख कोशिशों के बावजूद कैप्टन सौरभ ने एक भी जानकारी नहीं दी|आखिरी वक्त तक उन्हें अपना देश याद रहा| उन्होंने सारे दर्द हंसते-हंसते पी लिया और अंत में जब वह दर्द नहीं झेल सके, तो मौत को गले लगा लिया |
अगर सरकारी आंकड़े को माना जाए तो तकरीबन 527 जवान कारगिल के युद्ध में शहीद हुए थे, जबकि 1200 से अधिक जवान युद्ध के दौरान जख्मी हुए थे| वहीं अगर पाकिस्तान की बात की जाए तो एक आंकड़े के मुताबिक 4000 के आसपास जवान युद्ध में मारे गए थे| कारगिल युद्ध में भारत की जीत ने साबित कर दिया कि हमारे सैनिक देश की सुरक्षा के लिए जान की बाजी लगाने का जज्बा रखते हैं और भारत के खिलाफ हर बुरी नजर का मुंहतोड़ जवाब देने की हिम्मत रखते हैं| कारगिल युद्ध का जब जिक्र आता है तो याद आते हैं वह जांबाज और दिलेर जवान जिन्होंने देश के दुश्मन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया| कारगिल गवाह है उन जवानों के हौसले के और अदम्य साहस का जो देश पर मर मिटने की कसम लेकर रणभूमि में उतरे थे| कारगिल-सियाचिन को भारत से अलग-थलग करने की पाकिस्तान की इस कोशिश को भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया| भारतीय वायु सेना और थल सेना ने पाकिस्तान के सभी मंसूबों पर पानी फेर दिया|  

साल 1947 ने जहां एक ओर सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में आजादी के सुखद सवेरे का अहसास कराया था, वहीं बंटवारे का कभी न भरनेवाला जख्म भी दे दिया| बंटवारे के कुछ ही महीनों बाद भारत और पाकिस्तान की सेनाएं आमने-सामने आ गयी थीं, कारण था- कश्मीर| भारत विभाजन के सात दशक बाद भी इस विभाजन का उद्देश्य अधूरा है| पाकिस्तान एक प्राकृतिक भूभाग वाला देश नहीं है, भारत की जमीन पर सीमा खींच कर उसे बनाया गया है| इस तरह से कोई देश बनता नहीं है| कोई भी प्राकृतिक देश सैकड़ों-हजारों सालों की अपनी भौगोलिक और राजनीतिक अस्मिताओं को सजाते-संवारते हुए एक संप्रभु राष्ट्र की शक्ल लेता है| एक प्राकृतिक देश की हजारों बरसों की अपनी एक सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान होती है| लेकिन, पाकिस्तान की बुनियाद ही एक कूटनीतिक गलती से पड़ी है, जिसे अंगरेजों ने धर्म के नाम पर बांट कर भारत से अलग कर दिया था|

दोनों देशों के पहले सत्ता-प्रमुखों- पंडित जवाहर लाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना- की घोषित आकांक्षाएं यही थीं की भारत-पाकिस्तान दोस्ती की अटूट मिसाल बने| लेकिन भारत-पाक संबंधों का इतिहास गवाह है कि हुआ ठीक इसके विपरीत| आजादी के बाद से ही पाकिस्तान भारत से बैर रखने लगा और कश्मीर पर कब्जा करने के इरादे से युद्ध के मैदान में भारत को ललकार कर कई बार मात खायी| पाकिस्तान पहले यह सोचता था कि वह युद्ध करके भारत से जीत जायेगा और इसलिए उसने 1965 और 1971 के युद्ध लड़े, लेकिन वह दोनों युद्ध हार गया और 1971 में तो बांग्लादेश के रूप में वह दो टुकड़े भी हो गया| यहां पाकिस्तान से बांग्लादेश का अलग होना भारत के लिए बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा सकती है| जब उसे आभास हो गया कि सीधे युद्ध में भारत को पराजित करना या कश्मीर पर कब्जा करना संभव नहीं है, तब आतंकवाद को पाल-पोस कर छद्म युद्ध की राह पर चल पड़ा| कश्मीर घाटी में 1989 में कुछ इसलामिक चरमपंथी गुटों ने आजादी की मांग को लेकर और कुछ गुटों ने पाकिस्तान में शामिल होने को लेकर विद्रोह कर दिया| इन विद्रोही गुटों को उकसाने और हथियार मुहैया कराने में पाकिस्तान की बड़ी भूमिका थी|

एक ओर पाकिस्तान का भारत से बैर आजादी के बाद से आज तक निरंतर जारी है, दूसरी ओर, भारत में सरकारों के बदलने के साथ-साथ नीतियों में उतार-चढ़ाव आता रहा हैं| पाकिस्तान के साथ दोस्ती के मकसद से नये-नये प्रयोग हुए, उदारता दिखाते हुए कई एकतरफा समझौते किये गये| लेकिन, आज स्वतंत्र भारत की तीसरी पीढ़ी भी पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य करने की चुनौतियों से जूझ रही है| इतिहास में ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं कि दो राष्ट्र आम जनजीवन में गहन और विस्तृत समानताओं के बावजूद आपसी संघर्ष की स्थिति में ठहर से गये हों|

पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक स्तर पर बातचीत की निरंतरता जारी तो रही, लेकिन हर प्रधानमंत्री की अपनी सोच के हिसाब से कुछ बदलाव भी आते रहे| पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर करने और दक्षिण एशिया में स्थायी शांति बहाल करने की दिशा में पूर्व प्रधानमंत्री आइके गुजराल का प्रसिद्ध सिद्धांत ‘गुजराल डॉक्ट्रिन’ चाहे जितना महत्वपूर्ण कदम रहा हो, पर पाकिस्तान के खिलाफ भारत की खुफिया एजेंसी रॉ की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के उनके निर्णय को लेकर सवाल उठाये जाते रहे हैं| 1999 का कारगिल युद्ध के पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर समझौता करके संबंधों को सुधारने की दिशा में ठोस प्रयास कर रहे थे, लेकिन कारगिल में छद्म हमलों के बाद परिस्थितियां एकदम उलट गयीं| इसी साल के अंत में पाकिस्तान में जनरल परवेज मुशर्रफ तख्तापलट कर सत्ता पर काबिज हो गये थे| भारत सभी बड़े युद्धों में पाकिस्तान को हराने के बावजूद पाकिस्तान के प्रति स्वैच्छिक रूप से उदार रहा है, दूसरी ओर पाकिस्तान का दीर्घकालीन रणनीतिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सबसे प्रभावी ताकत के रूप में न उभरे| जम्मू-कश्मीर, पंजाब और भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अलगाववादी तथा विध्वंसक शक्तियों को पाकिस्तान का सहयोग इस बात की पुष्टि करता है | 1999 के बाद बिना किसी औपचारिक युद्ध के वर्तमान समय तक कई जवान की शहादत हो चुकी है| अगर एक आंकड़े को आधार माना जाए तो सिर्फ 1999 से 2003 के दौरान तकरीबन 1874 जवानों की शहादत हुई थी| पाकिस्तान-समर्थित और पोषित आतंकवाद और अलगाववाद ने 1990 से कश्मीर में एक खूनी जंग छेड़ रखी है, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान आम कश्मीरियों को झेलना पड़ा है| राज्य-प्रायोजित आतंकवाद पाकिस्तान की विदेश नीति का अभिन्न अंग है, जिसका प्रयोग वह अपने पड़ोसी मुल्कों- भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ छद्म युद्ध के रूप में करता है| नरेंद्र मोदी जी ने भी प्रधानमंत्री बनते ही पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की बहुत कोशिशें कीं| लेकिन, पाकिस्तान ने हमें पठानकोट, ताजपुर उरी, पुलवामा जैसे हमले दिये|

परंतु वर्तमान का भारत जिस प्रकार सशक्त हुआ है वह अपने दुश्मनों पर लगातार हावी होता जा रहा है| 2014 के बाद नरेंद्र मोदी जी के सरकार में भारत ने पाकिस्तान पर कई कूटनीतिक हमले की है| जिस तरह से उरी और पुलवामा का जवाब सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक रूप में दिया गया, पाकिस्तान अब पस्त है| यह आज का भारत है और अपने दुश्मनों को उनके घर में घुसकर मारता है| वर्तमान में पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है| पाकिस्तान में महंगाई दर उच्चतम स्तर पर है| भारत लगातार कोशिश कर रहा है कि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों पर लगाम लगाया जाए और इसी पहल के तहत हालिया में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना हाफिज सैयद को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया गया| पूरे विश्व का दबाव पाकिस्तान पर है कि वह अपनी धरती से पाक प्रायोजित आतंकवादी संगठनों को बंद करें| पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान में लगातार आजादी की मांग उठ रही है और बगावत काफी जोरों से हो रहा है| पाकिस्तान मामले में विगत कुछ वर्षों में नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत हुई है जो एक सराहनीय कदम है| पर सवाल एक ही उठता है भारत पाकिस्तान के विवाद की सबसे बड़ी जड़ कश्मीर है| वर्तमान में इसका एक ही समाधान दिखाई दे रहा है की भारत अनुच्छेद 370 तथा अनुच्छेद 35 'ए' खत्म करें जो कि वर्तमान की सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है तभी जाकर कश्मीर घाटी में फिर से खुशहाली लौट पाएगी तथा भविष्य में हमें दोबारा दूसरा कारगिल नहीं देखना पड़ेगा|

Comments

  1. Very nice and informative article. Keep up the good work....!☺

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  2. भारत सरकार ने हमेशा इसे कारगिल घुसपैठ कहा है। यह कोई युद्ध नहीं था, पाकिस्तान का हमारे क्षेत्र में घुसपैठ की कायराना हरकत है। युद्ध की परिभाषा अलग होती है।

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