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Showing posts from March, 2019

मोदी सरकार और नारी सशक्तिकरण के नए अध्याय

शिशु रंजन (आर्थिक और राजनितिक विश्लेषक)  एवं अजित झा (अर्थशास्त्र सह-प्राध्यापक - ISID ) भारतीय सभ्यता और संस्कृति में "नारी" शब्द अपने आप में एक सम्मानजनक भाव भर देता है और यह भाव उनके द्वारा किये गए त्याग, ममत्व, प्रेम, और शक्ति से आता है। इस सनातन संस्कृति ने इसीलिए नारी को लक्ष्मी और सरस्वती के अलावा शक्ति के रूप में भी पूजित किया है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति का सच्चा पुजारी वो है जो हर क्षण महिलाओ के योगदान को नमन करे। आजादी के पश्चात संविधान निर्माताओं ने भी भारतीय सभ्यता के इस मूलमंत्र को ध्यान में रखते हुए महिलाओ को बराबर का अधिकार दिया, जबकि विश्व के अनेकों विकसित देशों की महिलाओं उससे वंचित थी। परन्तु, यह भी एक कटु सत्य है की विश्व में अनेक स्थानों पर आज भी महिलाओ की बराबर की भागीदारी नहीं मिलती है। वर्तमान भारतीय समाज भी इससे अछूता नही हैं। इसीलिए सम्पूर्ण विश्व में इस विषय पर चेतना जागृत करने के लिए ८ मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। भारत ने भी इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है। चुकी मोदी नेतृत्व वाली सरकार अपने चरणकाळ के बिलकुल अंतिम

Social Conflict: A Philosophical Perspective

Shivesh Upadhyay - Economist Conflict is a persistent behavioral aspect of human existence from the time immemorial. Of course, the form and means of conflict has changed over time but the basic philosophy of conflict remains same.There are several bases of conflict – social, economic, political, theoretical, or philosophical. The social conflict incorporates them all. But in my view, philosophical differences dominate as reason for conflict. Society and its people may enter into conflict unintentionally. There are two ways people may view things in this world. First, the truth of nature on basis of something which they can see, smell, touch, or feel. Second, the power of belief on basis of something which we cannot see, feel or touch, but still believes to be true. In such scenario, people cannot experience or test the truthfulness of thoughts or theories propounded by others so easily. In the first case, the nature of conflict is economic or political and scarcity of