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मोदी सरकार और नारी सशक्तिकरण के नए अध्याय


शिशु रंजन (आर्थिक और राजनितिक विश्लेषक)
 एवं अजित झा (अर्थशास्त्र सह-प्राध्यापक - ISID )
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में "नारी" शब्द अपने आप में एक सम्मानजनक भाव भर देता है और यह भाव उनके द्वारा किये गए त्याग, ममत्व, प्रेम, और शक्ति से आता है। इस सनातन संस्कृति ने इसीलिए नारी को लक्ष्मी और सरस्वती के अलावा शक्ति के रूप में भी पूजित किया है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति का सच्चा पुजारी वो है जो हर क्षण महिलाओ के योगदान को नमन करे। आजादी के पश्चात संविधान निर्माताओं ने भी भारतीय सभ्यता के इस मूलमंत्र को ध्यान में रखते हुए महिलाओ को बराबर का अधिकार दिया, जबकि विश्व के अनेकों विकसित देशों की महिलाओं उससे वंचित थी। परन्तु, यह भी एक कटु सत्य है की विश्व में अनेक स्थानों पर आज भी महिलाओ की बराबर की भागीदारी नहीं मिलती है। वर्तमान भारतीय समाज भी इससे अछूता नही हैं। इसीलिए सम्पूर्ण विश्व में इस विषय पर चेतना जागृत करने के लिए ८ मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। भारत ने भी इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है। चुकी मोदी नेतृत्व वाली सरकार अपने चरणकाळ के बिलकुल अंतिम पायदान पर है, यह समीक्षा जरुरी है की भारतीय विकास गाथा में महिलाओं की स्तिथि में कितने बदलाव आये हैं और एक आम हिन्दुस्तानी नारी कितनी सशक्त हुई है।

प्रधानमंत्री मोदी अपने कार्यकाल के शुरुवात से ही नारी सशक्तिकरण के प्रति सजग दिखे। "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" सिर्फ एक नारा नहीं था, बल्कि उन करोडो लोगो के लिए एक सन्देश था जो विभिन्न कारणों से बेटिओं को कोख में मारने का जघन्य पाप कर रहे थे। यह चार शब्द उस मानसिकता पर भी कुठाराघात था जो बेटिओं को बेटों से कमतर आंकता था, जिसके परिणामस्वरूप जन्मी बेटिओं के साथ पालन-पोषण के साथ साथ शिक्षा में भी दोहरा बर्ताव किया जाता रहा था। २०१५ में शुरू किये गए इस अभियान के परिणामस्वरूप १०४ जिलों में शिशु लिंगानुपात में सुधार देखने को मिला है। कार्यक्रम की सफलता को देखते हुए इसे पुरे देश में लागू कर दिया गया है। इस कार्यक्रम की वजह से महिलाओं में आत्मविश्वास के साथ साथ प्रसव, पूर्व और पश्चात, दोनों प्रकार की स्वास्थय सुविधाएं बढ़ी है। बेटिओं को पढ़ने का सुअवसर मिला है। स्वच्छ भारत के अंतर्गत सभी विद्यालयों में शौचालय का निर्माण भी कन्याओं के स्वाभिमान को बढ़ाने का काम किया है जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा में उनकी भागीदारी बढ़ गयी है। शिक्षा और स्वास्थय नारी सशक्तिकरण के दो सबसे मानक उपाय है और पिछले साढ़े चार साल की उपलब्धि सराहनीय रही है।

महिला सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए अनेक ऐतिहासिक फैसले लिए गए है। महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों पर सख्ती बरतने हेतु सजा के प्रावधान को दुगना कर दिया गया है। देश के हर भूभाग में एकल सहायता केंद्र खोले गए हैं जिससे महिलाओं को प्रसाशनिक और कानूनी सहायता एक साथ सुलभ हो सके। देशव्यापी दुर्भाषिय सहयता नंबर स्थापित किये गए हैं ताकि सुदूर भूभाग में रहने वाली महिलाये भी अपने फ़ोन के माध्यम से सुविधाएं प्राप्त कर सकती है।

महिलोओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने की दिशा में भी अनेकों प्रयास किये गए है। देश के इतिहास में पहली बार महिलाओं के लिए पुलिस बल में ३३% आरक्षण की सुविधा दी गयी है जिससे उनकी भागीदारी में जबरदस्त बढ़ोतरी हो। पुलिस बल में महिलाओ की भागीदारी बढ़ने से अनेको लाभ मिलने वाले है। यह सिर्फ रोजगार का अवसर मात्र नहीं है। बल्कि, नारी सुरक्षा, उनके आत्मविश्वास, भावनात्मक समृद्धि, और सशक्तिकरण के पथ पर ये अद्भुत कदम है। भारतीय सेना में भी लड़ाकू पदों के लिए महिलाओं के प्रवेश को स्वीकृति दे दी है। भारतीय वायुसेना ने भी पहली बार लड़ाकू विमान उड़ाने की अनुमति प्रदान कर इतिहास रचा है। और तो और, देश की पहली महिला रक्षामंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण करोडो भारतीय महिलाओं के लिए एक आदर्श बन गयी हैं जो देश सेवा के लिए फ़ौज में जाना चाहती है।


महिलाओं में आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ाने हेतु कई योजनाओं को कार्यान्वित किया गया है। महिला इ-हाट की शुरुवात महिला उधमियों और व्यवसाइयों के उत्पाद और सेवाओं को बाजार देने का काम करता है जिससे उनका लाभ प्रतिशत बढ़ सके। नारी शक्ति योजना के अंतर्गत कौशल विकास योजना, मुद्रा योजना, और अन्य योजनाए जो व्यवसाय को बढ़ाने के लिए शुरू की गयीं है, उनमे महिला भागेदारी की तरफ विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके आलावा पूर्व से चली आ रही योजनाओं को जन-धन-आधार योजना के माध्यम से और सुदृढ़ किया है। प्रसव के बाद १२ सफ्ताह की छुट्टी का प्रावधान बढ़ा कर २६ सफ्ताह कर दिया गया है। इससे महिलाओं में रोजगार की सुरक्षा की चिंता का निराकरण हुआ है और उसके परिणामस्वरूप माँ अपने और अपने नवजात बच्चे का बेहतर देखभाल कर सकती है।

इन योजनाओ के सफल क्रियान्वयन से महिला सशक्तिकरण के प्रयासों में अभूतपूर्व सफलता मिली है। पहली बार बेटी होना न बाप के लिए बोझ लगता है, न समाज के लिए। बेटियों के शिक्षा और स्वास्थय के सुअवसर बढ़ने से देश के समग्र विकास में उछाल आया है। सामाजिक परिवेश भी महिलाओं के अनुकूल बना है। दहेज़ जैसी गंभीर सामाजिक समस्याओं का भी उन्मूलन हो रहा है। रोजगार के नए माध्यम उत्पन्न हुए है। रोजगार सुरक्षा में वृद्धि हुई है जिससे कामकाजी महिलाओं के जीवन पर साकारात्मक प्रभाव पड़ा है। महिला उधमी और व्यवसायी के विकास के नए अवसर खुले हैं। इन सब कामयाबी की वजह से आज भारतवर्ष सिर्फ विकास की राह पर नहीं चल रहा, बल्कि महिला नेतृत्व वाली विकास पथ पर चल रहा है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की आने वाला दशक नारी शक्ति दशक के रूप में जाना जायेगा।

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  1. परिदृश्य के लहजे से दमदार लेख

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