प्रधानमंत्री मोदी अपने कार्यकाल के शुरुवात से ही नारी सशक्तिकरण के प्रति सजग दिखे। "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" सिर्फ एक नारा नहीं था, बल्कि उन करोडो लोगो के लिए एक सन्देश था जो विभिन्न कारणों से बेटिओं को कोख में मारने का जघन्य पाप कर रहे थे। यह चार शब्द उस मानसिकता पर भी कुठाराघात था जो बेटिओं को बेटों से कमतर आंकता था, जिसके परिणामस्वरूप जन्मी बेटिओं के साथ पालन-पोषण के साथ साथ शिक्षा में भी दोहरा बर्ताव किया जाता रहा था। २०१५ में शुरू किये गए इस अभियान के परिणामस्वरूप १०४ जिलों में शिशु लिंगानुपात में सुधार देखने को मिला है। कार्यक्रम की सफलता को देखते हुए इसे पुरे देश में लागू कर दिया गया है। इस कार्यक्रम की वजह से महिलाओं में आत्मविश्वास के साथ साथ प्रसव, पूर्व और पश्चात, दोनों प्रकार की स्वास्थय सुविधाएं बढ़ी है। बेटिओं को पढ़ने का सुअवसर मिला है। स्वच्छ भारत के अंतर्गत सभी विद्यालयों में शौचालय का निर्माण भी कन्याओं के स्वाभिमान को बढ़ाने का काम किया है जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा में उनकी भागीदारी बढ़ गयी है। शिक्षा और स्वास्थय नारी सशक्तिकरण के दो सबसे मानक उपाय है और पिछले साढ़े चार साल की उपलब्धि सराहनीय रही है।
महिला सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए अनेक ऐतिहासिक फैसले लिए गए है। महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों पर सख्ती बरतने हेतु सजा के प्रावधान को दुगना कर दिया गया है। देश के हर भूभाग में एकल सहायता केंद्र खोले गए हैं जिससे महिलाओं को प्रसाशनिक और कानूनी सहायता एक साथ सुलभ हो सके। देशव्यापी दुर्भाषिय सहयता नंबर स्थापित किये गए हैं ताकि सुदूर भूभाग में रहने वाली महिलाये भी अपने फ़ोन के माध्यम से सुविधाएं प्राप्त कर सकती है।
महिलोओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने की दिशा में भी अनेकों प्रयास किये गए है। देश के इतिहास में पहली बार महिलाओं के लिए पुलिस बल में ३३% आरक्षण की सुविधा दी गयी है जिससे उनकी भागीदारी में जबरदस्त बढ़ोतरी हो। पुलिस बल में महिलाओ की भागीदारी बढ़ने से अनेको लाभ मिलने वाले है। यह सिर्फ रोजगार का अवसर मात्र नहीं है। बल्कि, नारी सुरक्षा, उनके आत्मविश्वास, भावनात्मक समृद्धि, और सशक्तिकरण के पथ पर ये अद्भुत कदम है। भारतीय सेना में भी लड़ाकू पदों के लिए महिलाओं के प्रवेश को स्वीकृति दे दी है। भारतीय वायुसेना ने भी पहली बार लड़ाकू विमान उड़ाने की अनुमति प्रदान कर इतिहास रचा है। और तो और, देश की पहली महिला रक्षामंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण करोडो भारतीय महिलाओं के लिए एक आदर्श बन गयी हैं जो देश सेवा के लिए फ़ौज में जाना चाहती है।
इन योजनाओ के सफल क्रियान्वयन से महिला सशक्तिकरण के प्रयासों में अभूतपूर्व सफलता मिली है। पहली बार बेटी होना न बाप के लिए बोझ लगता है, न समाज के लिए। बेटियों के शिक्षा और स्वास्थय के सुअवसर बढ़ने से देश के समग्र विकास में उछाल आया है। सामाजिक परिवेश भी महिलाओं के अनुकूल बना है। दहेज़ जैसी गंभीर सामाजिक समस्याओं का भी उन्मूलन हो रहा है। रोजगार के नए माध्यम उत्पन्न हुए है। रोजगार सुरक्षा में वृद्धि हुई है जिससे कामकाजी महिलाओं के जीवन पर साकारात्मक प्रभाव पड़ा है। महिला उधमी और व्यवसायी के विकास के नए अवसर खुले हैं। इन सब कामयाबी की वजह से आज भारतवर्ष सिर्फ विकास की राह पर नहीं चल रहा, बल्कि महिला नेतृत्व वाली विकास पथ पर चल रहा है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की आने वाला दशक नारी शक्ति दशक के रूप में जाना जायेगा।
परिदृश्य के लहजे से दमदार लेख
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