Skip to main content

Summary of EAC Rebuttal of Arvind Subramanian Claims on India's GDP overestimation

Sujit Kumar
Economist
Economic Advisory Council (EAC) to the Prime Minister has rebutted Dr. Arvind Subramanian (AS)'s claims about India overestimating GDP post 2011. The EAC has challenged AS on four counts: a) Motive b) Methodology c) Data and d) Inferences.
a) Of motive, AS should have spoken his mind while being a CEA to MoF. His influence on data collection, estimation and reporting would have been much greater had he taken interest much earlier. Doubting so in 2019 smells of an argument of convenience.

b) AS methodology, to put it mildly, is unconventional and bizarre as far as GDP estimation is concerned. Correlation of a select indicators can't be substitute for rigorous collection, collation and estimation of data on value add for a large and complex economy like India. His analysis of cross-country comparison also is unique as AS presume other countries reporting is sacrosanct while India a suspect.

c) Selection of data and variables: For 17 indicators AS chose, he also leaves a great many other indicators which would paint a picture contrary to his inferences. For example, tax collection, which is actual and not surveyed, data is ignored. Likewise, wage growth data shows robust gains post 2012. Similarly, his choice of reference years 2001-11 and 2012-17 are also prone to scrutiny. As Swaminathan Aiyar has shown, changing the reference period by two years, i.e. first period beginning 2003-11 could make 2012-17 period reported GDP look weaker enough, in consonance with broad trends painted by 17 indicators AS has chosen. 2001 was a year of global recession and 2002 a drought year in India, which meant GDP growth was below 5% during this couple of years. If included, it will pull down average of 2001-11 period by a percentage points, which makes basis for AS claims that no visible slowdown reflect in 2012 onward period GDP data even as 17 indicator show slowdown.

d) His inferences from the data. His conclusion: since correlation is not signalling the same story in two periods, the GDP must be overestimated. He ignores the productivity gains as well as change in structure of economy. By mostly focusing on Manufacturing sector divergence in volume based estimate (IIP) vs value added estimate in GDP, he actually overlooked any changes in Agriculture and Services, which together account for 3/4th of economy. His conclusion of GDP growth being 4.5% post 2012 period doesn't corroborate with actual experience of economy. Not a major crisis manifested and no loss of confidence shown by investors. 

To sum up, it's time we move past the perception cage we have all got ourselves into. It is better to leave matters to experts , the statisticians, who do a rigorous effort to bring us a simple measure of economic activity to inform our past, present and way ahead.

Comments

Popular posts from this blog

कोरोना के खिलाफ युद्ध में प्रकाश बिंदु बन कर उभरेगा भारत

संतोष पाठक सचिव, CSRA एवं राजनीतिज्ञ क्या दुनिया चीन के कुकर्मों की सज़ा भुगत रही है? क्या चीन के प्रयोगशाला से निकला यह “वुहान वायरस” अंतरराष्ट्रीय राजनीति और संबंधों के नए समीकरणों की रचना करेगा? इस महामारी के खिलाफ युद्ध में भारत कितना सफल होगा और जो भी परिस्थिति उभरेगी उसमे भारत की भूमिका क्या होगी? ये ऐसे प्रश्न हैं जिन पर अभी से विचार तथा अनुसन्धान शुरू हो गया है और भारत के लोग इस विषय पर गंभीरता से चिंता कर रहे हैं| नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के सरकार में आने के बाद से ही भारत अचानक से दुनिया के राजनितिक व्यवस्था के केंद्र में आ गया था और वर्तमान के कोरोना संक्रमण काल ने भारत की भूमिका को ज्यादा महत्वपूर्ण बना दिया है| लेकिन ये सारी स्थितियां कोरोना के खिलाफ संघर्ष के आतंरिक सफलता पर भी टिकी हुई है| इस विकल्प में हमें सफल होना ही होगा, असफलता कोई विकल्प ही नहीं है| इस लेख को लिखते वक़्त दुनिया भर में 20 हज़ार से ज्यादा मौतें रिपोर्ट की जा चुकी हैं और समाचार है की अभी यूरोप सहित अमेरिका तथा एशिया के महत्वपूर्ण देश इस संक्रमण के गंभीर चपेट में हैं और इ...

एक देश-एक चुनाव

कुणाल भारती राजनीतिक एवं सामाजिक विश्लेषक 15 अगस्त 1947 के दिन भारत को बरतानिया सरकार के हुकूमत से आजादी मिली| तकरीबन 2 वर्ष से अधिक के कड़ी मशक्कत और रायसिना हिल्स में हुए रात दिन संविधान सभा बैठकों के बाद विश्व का सबसे बड़ा संविधान भारत को मिला, निश्चित रूप से भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाया| 26 जनवरी 1950 को भारत एक नए गणतंत्र के रूप में दुनिया में अपनी नई पहचान बनाई तथा संविधान पारित हुआ | लोकतांत्रिक व्यवस्था से इतने विशाल देश को चलाने के लिए प्रतिनिधि निकाय की भी आवश्यकता पड़ी, इन्हीं वजह से उसी प्रतिनिधित्व को पूरा करने के लिए देश में पहली बार 1951-52 में आम लोकसभा चुनाव हुए ताकि भारत की जनता अपने इक्षा मुताबिक अपनी सरकार का चयन कर सके| गौरतलब है की वर्तमान में भारत में तीन स्तरीय शासन व्यवस्था है | भारत की चुनाव प्रणाली जर्मन सिस्टम पर आधारित है| प्रथम चुनाव में देश में लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव साथ साथ हुए तथा यह सिलसिला अगले डेढ़ दशक तक यानी कि 1957,1962 और 1967 के चुनाव में चलता रहा,लेकिन उसके बाद राज्य सरकारें अपने 5 साल के कार्यकाल से पहले ही गिरने लगीं और...

संयम और साहस: जीतेगा भारत, हारेगा कोरोना

सुजीत कुमार, अर्थशाष्त्री एवं बैंकर कोरोना वायरस से फैली वैश्विक महामारी आज समस्त विश्व को घुटने पे ले आया है। जो कभी अकल्पनीय लगता था, आज समक्ष है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के पहिये जड़ हो गए।  जो जहां है, वहीं  थम से गया। चीन का यह virus निर्यात विश्व को भारी पड़ता दिख रहा। 7 lakh से ज्यादा लोग विश्व मे इसके चपेट में आ गए। हजारों दम तोड़ चुके। यह आंकड़ा exponentially बढ़ रहा है। इस दर पे आने वाले हफ्तों में करोड़ों को चपेट में ले सकता है। इसीलिए भारत सरकार ने दूरदर्शी सोंच दिखाते अर्थव्यवस्था पर जीवन सुरक्षा को चुना। भारत जैसे सघन आबादी वाले देश मे कोरोना जैसी महामारी का तांडव कल्पना में ही सिहरन पैदा कर देने वाला है। पिछले बार जब वर्ष 1918 में महामारी (Spanish Flu) आयी तो अकेले भारत में सवा करोड़ जान काल के गाल में समा गए। पूरे विश्व मे यह आंकड़ा 5 करोड़ के ऊपर का रहा। आज के भारत की आबादी को देखते हुए 3-4 प्रतिशत की fatality rate (संघातिकता दर, मृत्यु) से 5 करोड़ का आंकड़ा भी छोटा दिखता है। सनद रहे कि ये 3-4 प्रतिशत दर विकसित देशों के आंकड़े हैं जहां चि...