"ईश्वर का अपना देश" मैं तबाही.! प्राकृतिक या मानव निर्मित.?
हिंदू मान्यताओं के अनुसार केरला का निर्माण भगवान परशुराम ने किया था जो कि विष्णु के अवतार है। कहा जाता है इसका निर्माण इस लिए हुआ था की विष्णु के भक्त शांतिपूर्वक इस धरती पर रह सके इसीलिए इसे भगवान का अपना देश भी कहा जाता है। पर हाल ही में यहां आई आपदा की वजह से पूरे विश्व की नजर भारत के दक्षिणी प्रांत केरल राज्य पर टिकी हुई है। यह आपदा काफी भयानक है गौरतलब हो कि पिछले 94 साल से ऐसी बाढ़ वहां नहीं आई थी। काफी जान माल का नुकसान हुआ है। सरकार के अनुमानित आंकड़े के हिसाब से तकरीबन 19,512करोड रुपए का नुकसान अभी तक हो चुका है जबकि 400 मासूम लोगों को अपनी जिंदगी गवानी पड़ी है। सरकार और गैर सरकारी संस्थानों के द्वारा तकरीबन 60 हजार रिलीफ कैंप का आयोजन कराया जा चुका है। फसलें तबाह हुई सड़कें बर्बाद हुई।
केरल के लोगों का पेट भी अब दूसरे राज्य के अनाजों से चलेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले हुई एक सप्ताह की घटनाओं से देश एकजुट होकर खड़ा हुआ है चाहे वह पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी के निधन के बाद उनके सम्मान में लुटियंस दिल्ली से लेकर भारत के दूसरे हिस्सों ने पूरे देश ने जो एकजुटता दिखाया है की लेफ्ट राइट या सेंटर सभी को एक कतार में लाकर खड़ा कर दिया या केरल के इस त्रासदी के बाद। दोनों परिस्थितियों में देश ने एकजुट होकर एक नई मिसाल पेश की है। केंद्र सरकार, दूसरे राज्य सरकारों, गैर सरकारी संस्थान तथा आम लोगों के द्वारा सहायता राशि भी केरल राज्य को प्रदान किया जा रहा है। 'Paytm' पर जैसे ऐप तो बकायदा 'केरल फ्लड डोनेशन' पोटली बना दिए हैं। गौरतलब है कि यह सारी प्रयत्न काफी सराहनीय है। लोग बढ़-चढ़कर सहायता राशि दे रहे हैं।
अभिनेता तथा दूसरे इस्लामिक देशों से भी बड़ी मात्रा में सहायता राशि केरल के पुनः निर्माण के लिए दिया जा रहा है। पर दो तीन बातें में रखना चाहता हूं यहां पर जो की गंभीरता पूर्वक हमें सोचनी चाहिए। पहला यह कि हम यह सहायता राशि 'पब्लिसिटी स्टंट' के लिए तो नहीं कर रहे हैं ना। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से मैंने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर यह गौर किया है की लोग जो भी सहायता राशि बाढ़ के लिए केरल में भेज रहे हैं उसका वह बकायदा स्क्रीनशॉट लेकर फ़ेस्बुक तथा वट्स ऐप पर अपलोड कर रहे हैं। क्या सहायता सिर्फ फोकस के लिए रह गया है, अपने आप को दानवीर कहलाने के लिए रह गया है या फिर आज के दौर के चकाचौंध में हम इतने अंधे हो गए हैं की हम नैतिक सिद्धांतों के साथ समझौता कर लिए हैं। दूसरी बात जो मुझे चिंतित कर रही है बाहर के देशों से जो भी सहायता राशि दी गई है वह सब इस्लामिक देश हैं, दूसरे देशों का योगदान इसमें क्यों नहीं अभी तक आया। ज्ञात हो कि केरला में मुस्लिम तथा ईसाई जनसंख्या काफी अधिक तादात में है। ऐसा तो नहीं है कि लोग अब सहायता भी धर्म देखकर करते हो। पिछले दिनों मैंने यह भी गौर किया कि कुछ और अल्पसंख्यक समाज के लोगों ने नाराजगी व्यक्त की है भारत सरकार के प्रति उनका कहना है केंद्र सरकार से उन्हें और सहायता की अपेक्षा थी जो कि उन्हें अभी तक नहीं मिला है और दूसरे मध्य ईस्ट एशिया इस्लामिक देशों से मिल रहा है। 2014 के पहले भी आपदाएं आती थी तब विदेशों से पैसा नहीं आया करता था,अन्यथा आम जन इसके लिए भी वर्तमान की केन्द्र सरकार को ही श्रेय दे रहें हैं। यह गौर करने वाली बात है। एन डी आर एफ की टीम भी वहां केंद्र सरकार के द्वारा तैनात कर दी गई है जो अपना काम बखूबी कर रहे हैं। अब बात भगवा आतंकवाद का भी कर ले।
जिस तरह पूरे देश में माहौल बनाया जाता है कि आर.एस.एस के लोग आतंकवादी होते हैं यह काफी चिंतन में डाल देगा उन आलोचकों को। क्योंकि जिस प्रकार यह भगवा आतंकवादी लोग आतंक की जगह अपने प्राणों को जोखिम में डालकर लोगों की सहायता कर रहे हैं वह कल्पनीय नहीं है। 'आतंकवादी' की जो परिभाषा है की आतंक के माध्यम से लोगों की जान लेना, उन्हें भयभीत करना। पर यह तथाकथित भगवा आतंकवादी तो इस त्रासदी में भी ,एकदम विपरीत परिस्थितियों में भी लोगों की सहायता कर रहे हैं। मुझे समझ नहीं आता है कि समाज के कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए कैसे इस तरह के संस्थानों की आलोचना करते हैं| सबसे बड़ी बात यह है की बाढ़ जैसे त्रासदी में भी दो तरफा व्यवहार क्यों किया जाता है| एक तरफ जहां केरल में बाढ़ आई है तो पूरे विश्व का नजर ,पूरे देश का नजर केरला पर है| हम बिहारी भी बार-बार बाढ़ की त्रासदी झेलते हैं| बाढ़ का दर्द हम बिहारियों से ज्यादा कौन जाने| पर हमें तो लोगों का समर्थन कभी इस तरह से नहीं प्राप्त हुआ। शायद इसका मूल कारण यह कि हम गरीब राज्य हैं, हम पिछड़े हैं। लोगों को हमसे सहानुभूति है पर हमसे किसी प्रकार का लाभ नहीं है| केरला एक समृद्ध राज्य है तो बाकी लोगों का स्वार्थ भी वहां से जुड़ा हुआ है। गौर करने वाली बात यह है कि केरला में वर्तमान में वामपंथी शासन है और तकरीबन पिछले 5 दशकों से वामपंथ की जड़े वहां काफी मजबूत है|एक आंकड़े को अगर आधार माना जाए तो वहां हर 95 व्यक्ति पर एक रजिस्टर्ड एनजीओ है। आपदा की इस घड़ी में कहां है वह सारी एनजीओ संस्थाने। मुझे तो हंसी तब आती है कि जब यहां बिहार के लोग केरला के लिए सहायता राशि देते हैं तो उसे सोशल मीडिया पर अपडेट करते हैं पर जब अपने घर में ही बाढ़ आता है तो अपने ही लोग सहायता के लिए हाथ नहीं बढ़ाते हैं। बिहार जैसे राज्यों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों? खैर यह सारी बात तो सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से थी।
सबसे बड़ी बात यह है कि क्या मुख्य कारण है कि केरल को इस तरह की त्रासदी के सामना करना पड़ रहा है। हो सकता है इसका मुख्य कारण हो तगड़ा मानसून। केरल में यह पिछले 5 सालों में सबसे मजबूत मानसून है। 2086 मिलीलीटर बारिश हो चुकी है अभी तक। वैसे भी केरल की एक खास बात है कि वहां दो मानसून एक ही वर्ष में आते हैं। पहला मानसून जिसे साउथ वेस्ट मानसून कहते हैं समुंदर से उठता है और पश्चिमी घाटों से टकराकर केरल समेत दूसरे राज्य में बारिश होता है। और दूसरा जो होता है वह रिट्रीट मानसून होता है। केरल के 14 में से 13 जिले भीषण बाढ़ के चपेट में है। पर कुछ रोचक तथ्य है। पर क्या केरल में वर्षा ही मुख्य कारण है बाढ़ का ? पर्यावरणविदों का मानना है कि नियमों का पालन सरकार द्वारा भी नहीं किया जा रहा है। वोटबैंक की राजनीति के चलते जिन जगहों पर निर्माण की इजाजद नहीं है वहां भी ये काम हो रहा है। जिसे सरकार भी नहीं रोक रही। इन क्षेत्रों में निर्माण न किया जाए इसके लिए साल 2010 में गाडकिल कमिटी बनाई गई थी। केंद्र सरकार ने स्वंय इस पैनल का गठन किया था।
अवैध निर्माण के चलते इस रिपोर्ट में कहा गया था कि मानवीय हस्तक्षेप के कारण पश्चिमी घाट सिकुड़ रहा है। यह घाट भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर बादलों को तोड़ने में अहम भूमिका निभाता है। 2010 में इस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इन क्षेत्रों में निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। लेकिन फिर भी सरकारें इसके उलट काम कर रही हैं। एक पर्यावरणविद के मुताबिक बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान उन इलाकों को हुआ है जो इकोलॉजिकली सेंसिटिव जोन में आते हैं। यहीं पर सबसे ज्यादा भूस्खलन भी हुआ है।बाढ़ आने का दूसरा कारण है चैकडैम। केरल की सरकार के पास आज भी ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि राज्य में कितने चैकडैम हैं। इन चीजों के सुधार के लिए केंद्र और राज्य सरकार को साझा रूप से नीति बनाने की आवश्यकता है। जाहिर है कि केरला में काफी छोटी एवं बड़ी नदियां हैं, और बाढ़ का मुख्य कारण नदियों का उफान ही होता है। इस बार भी कुछ वैसा ही हुआ है पेरियार और अर्नाकुलम नदी अपने उफान पर है। वैसे तो उष्णकटिबंध देशों में वर्षा की अनुमान लगाना काफी मुश्किल है पर हालिया दिनों में जिस प्रकार का जलवायु परिवर्तन देखा गया है वह काफी चिंतन का विषय है जिस प्रकार की लचर आपदा प्रबंधन व्यवस्था देखी गई वह एक सबक है बाकी के राज्यों के लिए कि अभी भी सचेत हो जाएं नहीं तो इस प्रकार की भयावह घटना से दूसरे राज्य में अछूते नहीं रह पाएंगे।
ई० कुणाल भारती |
very well written.
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