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काल के कपाल पर... :- संतोष पाठक

यह साधारण नहीं है। भारत के राजनीति में महज़ एक मत से हार जाए। निश्चय ही वह साधारण घटना नहीं थी। पर रार नहीं ठानना और जनता से अपने कार्यों और छवि के आधार पर वापस वोट मांगने निकलना यह अटल ही कर सकते हैं। उनपर लिखना या उनका विश्लेषण करना जो खुद लेखक था, लेखक सिर्फ कविताओं या लेखों का नहीं बल्कि जब उसे मौका मिला तब उसने भारत की नयी तस्वीर ही लिख दी उसे कोई क्या श्रधांजलि लिखेगा। दक्षिणपंथ और राष्ट्रवाद की उफनाती राजनीति का सबसे चमकता सितारा जब बुझा तो उसने अपने पीछे अमेरिका के मुकाबले की चमचमाती सड़कों के साथ-साथ गाँव-गाँव में प्रधानमंत्री के नाम से बनने वाली सड़कें, लाइसेंस राज से मुक्ति, सम्पूर्ण भारत में करोड़ों मोबाइल फ़ोन, सूचना प्रोध्योगिकी का सम्पूर्ण तंत्र, घर-घर गैस चूल्हे, लम्बी लाइनों से मुक्ति, मुफ्तखोरी और ऐशगाह के अड्डे बन चुके समाजवाद के प्रतीक मृतप्राय उद्योगों से मुक्ति और परमाणु बम के परिक्षण के बाद दुनिया भर में भारत को वैश्विक शक्ति के रुप में स्थापित करके गए और सबसे ऊपर विकास की राजनीति की मजबूत जड़ें छोड़ कर गए हैं।
यह एक महाप्रयाण है, और यह सदियों में पैदा होने वाले पुण्यात्मा के अन्तिम विदाई की बेला है। तब उनके कृत्यों को याद करके हम अपने देश और माटी के उज्जवल भविष्य की सिर्फ कामना नहीं करनी बल्कि इस नवयौवन पीढ़ी को उनके आदर्शों से सीखनें की भी बेला है। आतुरता के लिए पहचानी जाने वाली आज की पीढ़ी के लिए वो सबसे बड़ी प्रेरणा थे। पांच दशकों की अपनी राजनीति में अटल जी ने लगभग चार दशकों तक विपक्ष की राजनीति की, लेकिन कभी उकताए नज़र नहीं आये। कांग्रेस, समाजवादी, साम्यवादियों जैसी वटवृक्ष के सामने नयी दक्षिणपंथ के राष्ट्रवादी कोंपलों को सींचते रहे और जब आये तब दुरुस्त आये और भारत की वैश्विक भूमिकाओं के साथ साथ देश के युवाओं को सपने देखने देने की राजनीति की शुरुआत की। हौसलों की उड़ान इतनी मजबूत रखी की लोग उनके जीवटता के सामने स्वयं नतमस्तक होते चले गए। संसद में विश्वासमत हासिल करने से चुके अटल जी का यह कथन की “सत्ता का खेल चलता रहेगा, पार्टियाँ बनेंगी बिगड़ेंगी लोग आयेगे जायेंगे पर यह देश रहना चाहिए, देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए” उन्हें औरों से मीलों आगे ले गया. एक सुर में यह बात इतनी गंभीरता से कहने वाला व्यक्ति आज हमारे बीच में नहीं है पर जितना महत्वपूर्ण इस देश का रहना है उनता ही महत्वपूर्ण इस विचार का भी रहना है. देश विचारों का सम्मलेन है परन्तु प्रमुखता इस देश को और समाज को मिलना चाहिए।
निश्चित ही हमारी पीढ़ी को उनके भाषणों के अभिलेखों को यु-ट्यूब पर सुनना और देखना है. यह हमसे नियति द्वारा छीना गया वो वरदान है जो हमें अप्राप्य रहेगा। अटल जी जब यौवन में थे तब नरेन्द्र मोदी जी का जन्म हुआ था लेकिन यह आखिरी पीढ़ी है जिसे उनके साथ काम करने और सीखने का मौका मिला है. अटल जी प्रेरणा हैं, आज ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है की “कोई सितारा हमसे रूठ गया कोई प्यारा हमसे रूठ गया” लेकिन इस पीढ़ी को उनसे प्रेरणा लेनी है की “क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं”। जिस प्रकार से आज दुनिया आज बिसात बिछा रही है और जो चुनौतियाँ इस पीढ़ी के सामने है उससे पार पाने के लिए उनसे बड़ा कोई प्रेरणा नहीं है।
आडवाणी जी के साथ उनके जनचेतना यात्रा के दौरान हमें अक्सर उनके श्रीमुख से अटल जी की बातें सुनने का मौका मिलता था। आडवाणी जी की शक्शियत अटल जी के शक्शियत से कतई कम नहीं है। लेकिन उन्हें इस बात का इल्म रहा है की अटल ही सही व्यक्ति हैं। यह एक राजनीतिक पैंतरे से ज्यादा एक दुसरे का भरोसा और एक दुसरे के प्रति समर्पण रहा की उन्होंने अटलजी के सामने खुद का कद स्वयं ही छोटा कर लिया और इसके लिए हम सभी उनके आभारी हैं की उन्होंने इस देश को अटल छाप छोड़ने वाला अमिट प्रधानमंत्री दिया जिसने आज़ाद भारत में अपनी वाणी, वयवहार और कार्यकुशलता से देश का मान इतना बड़ा कर दिया की आज की राजनीतिक पीढ़ी दुनिया में सर उठाकर और आने सामने बैठाकर बातें कर सकता है।
मेरे पिता का निधन इसी डिमेंशिया नामक बिमारी की वजह से पांच महीने पूर्व हुई है। मैं जानता हूँ की इस बिमारी में व्यक्ति किस प्रकार लाचार होकर अपनी मौत का इन्तजार करता है। मृत्यु तो स्वयं अटल जी की भाँती अटल है लेकिन अपनी संस्था की तरफ से माननीय प्रधानमंत्री जी से मांग भी रखना चाहता हूँ की इस बिमारी को गंभीरता से लें। यह धीरे-धीरे भारत में बुजुर्गों को अपने गिरफ्त में ले रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, जापान जैसे बड़े आर्थिक शक्ति से पुर्ण देशों में सरकारें इसे महामारी के रूप में ले रही हैं। यूरोप, जापान में लाखों लोग एकांकीपन की वजह से इस बिमारी के चपेट में आ रहे हैं और भारत में जिस तेजी से बुजुर्गों में अकेलापन बढ़ रहा है ये एक दिन बड़े संकट के रूप में उभरेगी। माननीय प्रधानमंत्री जी से आग्रह है की अटल जी के नाम से अखिल भारतीय आरोग्य संसथान ‘एम्स’ में ही एक अलग शोध संस्थान बना कर इस बिमारी पर गंभीरता से शोध हो और इससे बचने के उपायों पर चिंतन हो।
संतोष पाठक
सचिव, CSRA
हमारी छोटी सी संस्था “सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ रिजनल ऐस्पिरेसन” की तरफ से रत्न अलंकृत अटल जी को अश्रुपूरित श्रधांजलि। हमें काल के कपाल पर नए गीतों का इंतज़ार रहेगा...

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