कुणाल भारती राजनीतिक एवम सामाजिक विश्लेषक |
कहा जाता है कि भारत चुनावों का देश है। हर समय देश के किसी-न-किसी स्थान पर कोई न कोई चुनाव होता रहता है। चुनाव में एक प्रमुख समस्या फर्ज़ी मतदान की है। कई बार कई स्थानों से बूथ कैप्चरिंग से लेकर फर्ज़ी मतदान तक की रिपोर्ट्स आती रहती हैं। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने विधि और न्याय मंत्रालय को चिट्ठी लिखी थी जिसमे आधार कार्ड को वोटर आई.डी. से जोड़ने हेतु कानून बनाने की बात कही गयी थी । जिससे फर्ज़ी मतदाताओं पर लगाम लगाई जा सकती है तथा एक से अधिक जगहों पर पंजीकृत मतदाताओं की संख्या पर लगाम लगाने कि प्रयास की गई है। कानून में बदलाव के बाद चुनाव आयोग को नए और पुराने वोटर आई.डी. कार्ड धारकों के आधार नंबर को वैधानिक तौर पर हासिल करने की स्वीकृति मिल जाएगी। इससे पहले अगस्त 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के आधार कार्ड डिटेल लेने की योजना पर रोक लगा दी थी। इसमें जनप्रतिनिधि अधिनियम,1951 में संशोधन की मांग भी की गई है। आयोग ने कहा है कि वह नए आवेदकों और मौजूदा मतदाताओं की आधार संख्या एकत्र करना चाहता है जिससे वोटर लिस्ट में दर्ज नाम की जाँच-पड़ताल की जा सके।
निर्वाचन आयोग ने फर्ज़ी मतदान को रोकने के लिये वर्ष 2015 में नेशनल इलेक्टोरल रोल वेरिफिकेशन प्रोग्राम चलाया था जिसके अंतर्गत वोटर आई.डी. को आधार कार्ड से जोड़ने का काम शुरु किया गया था। किंतु चुनाव आयोग के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। हालाँकि यह कार्य मतदाताओं की स्वेच्छा से किया जा रहा था और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पहले चुनाव आयोग 38 लाख वोटर आई.डी. को आधार से लिंक कर चुका था।
इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए चुनाव आयोग ने विधि और न्याय मंत्रालय को जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम,1951 में संशोधन करने हेतु प्रस्ताव दिया है। इसके तहत वोटर आई. डी. को आधार कार्ड से जोड़ना अनिवार्य हो जाएगा। इससे फर्ज़ी वोटर आई.डी. की पहचान करना भी आसान हो जाएगा। साथ ही आधार कार्ड से जुड़ने पर ये भी पता चल जाएगा कि कोई वोटर कितने मतदान केंद्रों पर वोटिंग कर रहा है। इस तरह से मतों के दोहराव की समस्या से निपटा जा सकेगा।
- निर्वाचक नामावली का ‘डी-डुप्लीकेशन’: यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23 में संशोधन का प्रावधान करता है, जिससे मतदाता सूची डेटा को आधार पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ा जा सके।
- इसका उद्देश्य विभिन्न स्थानों पर एक ही व्यक्ति के एकाधिक नामांकन को रोकना है।
- इससे फर्जी वोटिंग और फर्जी मतों को रोकने में मदद मिलेगी।
- यह लिंकिंग विभाग से संबंधित व्यक्तिगत, लोक शिकायत और कानून तथा न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की 105वीं रिपोर्ट के अनुरूप है।
संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत इस अधिनियम को संसद द्वारा पारित किया गया था। यह संसद और राज्य विधानसभाओं के लिये चुनाव का संचालन करता है। यह उक्त सदनों का सदस्य बनने के लिये योग्यता और अयोग्यता के बारे में भी बताता है।
- आधार को वोटर आई.डी. से जोड़ने के पश्चात् मतदाताओं का सत्यापन करना आसान हो जाएगा।
- फर्जी मतदान एवं मतों के दोहराव की समस्या कम हो जाएगी।
- मतदान की नई प्रक्रियाओं जैसे-रिमोट वोटिंग, e- वोटिंग इत्यादि में आधार का उपयोग करके किसी भी स्थान से मतदान किया जा सकता है।
- मतदान प्रतिशत में वृद्धि होगी।
बिल में यह प्रावधान किया गया है कि आधार नंबर देना अनिवार्य नहीं होगा यानी कि यह ऐच्छिक प्रावधान है और इसमें किसी प्रकार की बाध्यता नहीं है । कोई व्यक्ति आधार नंबर अपने आवेदन के साथ नहीं देता है तो उसकी एप्लिकेशन खारिज नहीं किया जाएगा। इसके अलावा वोटर लिस्ट में मौजूदा नामों को भी लिस्ट से डिलीट नहीं किया जाएगा । आधार कार्ड का नंबर देना पूरी तरह से वैकल्पिक होगा ।
- लैंगिक तटस्थता लाना: नईं बिल में सरकार ने पत्नी शब्द को ‘जीवनसाथी’ से रिप्लेस करने का फैसला लिया है। सरकार का मानना है कि यह ‘जेंडर न्यूट्रल’ टर्म होगा ।
- इससे सेवा मतदाताओं को लाभ होगा । सेवा मतदाता वे हैं जो सशस्त्र बलों में सेवारत हैं या इसके बाहर राज्य के सशस्त्र पुलिस बल में सेवारत हैं या भारत के बाहर तैनात सरकारी कर्मचारी हैं।
- मल्टीपल क्वालिफाइंग डेट्स: इस बिल के एक अन्य प्रावधान में युवाओं को मतदाता के रूप में प्रत्येक वर्ष चार तिथियों के हिसाब से पंजीकरण कराने की अनुमति देने की बात कही गई है ।
- वर्तमान में एक जनवरी या उससे पहले 18 वर्ष के होने वालों को ही मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की अनुमति दी जाती है।
- निर्वाचन आयोग ने सरकार से कहा था कि एक जनवरी की कट ऑफ तिथि’ के कारण मतदाता सूची की कवायद से अनेक युवा वंचित रह जाते हैं।
- केवल एक कट ऑफ तिथि’ होने के कारण दो जनवरी या इसके बाद 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले व्यक्ति पंजीकरण नहीं करा पाते थे और उन्हें पंजीकरण कराने के लिए अगले वर्ष का इंतजार करना पड़ता था।
- इस बिल के पास होने के बाद कट ऑफ में सहूलियत होगी ।
- वर्तमान चुनावी कानून के प्रावधानों के तहत, किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता है, लेकिन महिला सैन्यकर्मी का पति इसका पात्र नहीं है । प्रस्तावित विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने पर स्थितियां बदल जाएंगी।
- कानून बनते ही चुनाव आयोग को किसी भी संस्था या परिसर का चुनाव प्रक्रिया में इस्तेमाल करने के लिए अधिग्रहण करने का अधिकार मिल जाएगा। चुनाव आयोग वोटिंग, काउंटिंग या ईवीएम रखने या फिर अन्य दूसरे काम करने के लिए अधिग्रहित कर सकेगी।
चुनाव आयोग ने 12 दिसंबर को पत्र लिखकर कहा कि उसने इस तरह के डाटा की सुरक्षा के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं की हैं। आयोग ने कहा कि वो आवेदन के वक्त ही दो तरह से डाटा को वैलिडेट करेगा। किसी भी तरह से आधार का डाटा वोटर डाटाबेस में नहीं जाएगा। आधार संख्या का इस्तेमाल केवल सत्यापन के लिए किया जाएगा। इसके लिए अलग से इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया गया है। सर्वर के लिए कई चरणों की सुरक्षा व्यवस्था है, जिसमें एक्सेस कंट्रोल सिस्टम, फायरवॉल, आईपीएस और एंटी वायरस का इस्तेमाल किया गया है। जो भी डाटा शुरुआत में मिलेगा, उसको किसी भी व्यक्ति को उपलब्ध कराने, ट्रांसफर करने, वितरण करने, ट्रांसमिशन करने या फिर सर्कुलेशन करने पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है।
इस संशोधन के परिणामस्वरूप ‘पॉलिटिकल प्रोफाइलिंग’ की स्थिति बनेगी। मतदाता पहचान पत्र को आधार संख्या से जोड़े जाने पर सरकार के लिये वैसे किसी भी मतदाता को ट्रैक करना बहुत आसान हो जाएगा है, जिसने अपने आधार का उपयोग कर कल्याणकारी सब्सिडी और लाभ प्राप्त किये हैं।
अभी तक चुनाव आयोग 38 करोड़ लोगों के वोटर आईडी कार्ड को आधार नंबर से लिंक कर चुका है। हालांकि 2015 में शुरू हुई इस कवायद पर चुनाव आयोग को कोर्ट के फैसले के बाद रोक लगानी पड़ी थी। देश भर में कुल 91 करोड़ लोगों के वोटर आईडी कार्ड बने हुए हैं। फरवरी 2015 में यह कवायद शुरू की गई थी, हालांकि उसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद इसको रोक दिया गया था। तब सर्वोच्च न्यायालय ने आधार का इस्तेमाल केवल राशन, एलपीजी और केरोसिन लेने के मंजूर किया था।
वोटर आईडी कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट आदि महत्वपूर्ण दस्तावेज है। लेकिन इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण आधार कार्ड है। वर्तमान में आधार कार्ड के बिना कोई भी काम करना संभव नहीं है। आधार कार्ड ना केवल एक पहचान पत्र है बल्कि इसमें बायोमेट्रिक डिटेल होने के कारण यह बहुत सबसे खास दस्तावेज बन गया है। सरकारी और गैर सरकारी कामकाज के लिए भी दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है। अगर आपके पास आधार कार्ड है तो आप घर बैठे बहुत सारे काम निपटा सकते हैं। आज आपको इस आर्टिकल के जरिए यह बताने जा रहे हैं कि आधार कार्ड बाकी दस्तावेजों से अलग क्यों हैं। इसमें ऐसा क्या है जिसकी वजह से इस को सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है।
अपने देश में आधार कार्ड को पहचान पत्र और पते के प्रमाण पत्र के रूप में मान्यता दी गई है। बाकी दस्तावेजों की तरह आधार में भी तस्वीर, नाम और पता दिया गया है जो पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा भी इसमें व्यक्ति का नाम, पिता या पति का नाम, उम्र, जन्म तिथि, लिंग, एड्रेस, मोबाइल नंबर, ईमेल एड्रेस (वैकल्पिक) के अलावा दोनों हाथ की दसों उंगलियों के निशान, आइरिस स्कैन और तस्वीर भी होती है। इसकी वजह से यह बाकी दस्तावेजों से अलग और खास है।
बहरहाल मतदाता पहचान पत्र को बायोमेट्रिक करने का प्रयास भारत के अलावा पहले भी विश्व के अन्य देशों ने कर रखा है। खास करके एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका महाद्वीप के वैसे देश जहां अवैध नागरिकों की समस्या बनी रहती है। बांग्लादेश ,मंगोलिया , फिजी ,नाइजीरिया ,युगांडा, जांबिया, घना अन्य कई ऐसे देश हैं जहां चुनावों में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए मतदाता पहचान पत्र में बायोमेट्रिक व्यवस्था की गई है जिससे कि अवैध नागरिकों को चुनावी प्रक्रिया से वंचित रखा जा सके और लोकतांत्रिक व्यवस्था को और मजबूती प्रदान की जा सके।
गौरतलब है कि विपक्ष इस कानून का पूर्ण रूप से सदन के अंदर एवं बाहर विरोध किया। इसमें किसी प्रकार का कोई संकोच नहीं है की वैसी तमाम पार्टियां जो अवैध नागरिकों को मतदाता पहचान पत्र के माध्यम से चुनावी लाभ उठाया करती थी अब उन्हें मुक्की खानी पड़ी है । वैसे 2 वर्ष पूर्व विपक्ष की कई पार्टियां पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग के डिमांड फॉर ग्रांट वर्ष 2020- 21 के 101वे एवं 107 वे बैठक में आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने के लिए सहमति जताई थी परंतु वर्तमान के परिस्थितियों में यह पार्टी इस नए कानून का विरोध कर रही है। वर्ष 2018 में मध्यप्रदेश कांग्रेस ने मुख्य चुनाव आयुक्त को एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि मध्य प्रदेश राज्य के हर एक विधानसभा में तकरीबन 30,000 से 40,000 फर्जी मतदाता है जो पूरे राज्य में लगभग 45 लाख के मतदाता का आंकड़ा होता है। वहीं 2019 में एनसीपी भी ने भी महाराष्ट्र में यह सुझाव दिया था की मतदाता पहचान पत्र का जुड़ाव आधार से होना चाहिए।
बंगाल - बिहार में अवैध घुसपैठिए मतदाता लोकतंत्र के लिए चुनौती
वर्ष 2006 में चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में रह रहे अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन क्लीन चलाया था। 23 फरवरी 2006 तक चले अभियान के बाद करीब 13 लाख नागिरकों के नाम वोटर लिस्ट से काटे गए। आशंका जताई गई थी कि 2006 में वोटर लिस्ट से हटाए गए 13 लाख अवैध बांग्लादेशी नागरिक थे। हालांकि इसके बाद भी चुनाव आयोग संतुष्ट नहीं था और उसने केजे राव की अगुवाई में दोबारा मतदाता सूची की समीक्षा के लिए अपनी टीम भेजी थी। तब पश्चिम बंगाल में अपनी जीत के लिए आश्वस्त रही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का बयान दिया कि चुनाव आयोग के सैकड़ों पर्यवेक्षक बंगाल उनकी जीत को नहीं रोक सकते हैं।
माकपा को अपने समर्पित वोट बैंक पर पूरा भरोसा था, जो कि माना गया कि बांग्लादेश से अवैध हुए बांग्लादेशी नागरिक थे, जिन्हें वोटर आईडी और राशन कॉर्ड देकर भारतीय नागरिक बना दिया गया था। राजनीतिक पंडितों का मानना था कि वाममोर्चा के सत्ता में आने के समय से ही मुस्लिम घुसपैठियों को वोटर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। दिलचस्प बात यह है कि उस समय विपक्ष में रहीं ममता बनर्जी भी मानती थी कि राज्य में दो करोड़ से अधिक बोगस वोटर हैं। तब एक मोटे अनुमान लगाया गया था कि भारत में डेढ़ से दो करोड़ घुसपैठिए महज वोट बैंक के लिए अवैध रूप से बसाए गए हैं। अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को बंगाल के एक बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा है। बाद में टीएमसी चीफ ममता बनर्जी को बंगाल की सत्ता के लिए समर्पित वोट बैंक के रूप मौजूद अवैध बांग्लादेशी नागरिकों का पार्टी के पक्ष में इस्तेमाल किया और वर्ष 2011 विधानसभा और 2016 विधानसभा चुनाव तमाम अंतर्विरोधों के बाद दूसरी सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहीं थी ।
वहीं अगर बिहार जैसे राज्य की बात की जाए तो आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है की सीमांचल क्षेत्र के कुछ जिले जहां अभी वर्तमान में अल्पसंख्यक जनसंख्या पूर्ण जनसंख्या की आधी है तथा किशनगंज जिले में तथाकथित अल्पसंख्यक जनसंख्या बहुसंख्यक जनसंख्या में परिवर्तित हो चुका है जोकि 1971 के सेंसस में सही मायने में अल्पसंख्यक था। विगत 40 वर्षों में अवैध बांग्लादेशी एवं रोहिंग्या घुसपैठियों की वजह पूरे क्षेत्र का सामाजिक संतुलन तो बिगड़ा ही है तथा अत्यधिक जनसंख्या भार की वजह से उस क्षेत्र के विकास में भी बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं । बिहार में एक लंबे समय से समाजवादी राजनीति का बोलबाला रहा है जो इस अवैध जनसंख्या को एक वोट बैंक की तरह देखता आया है। गौरतलब है कि वोट बैंक राजनीति की प्रतिस्पर्धा में इन अवैध घुसपैठियों के पास मतदाता पहचान पत्र की समस्या नहीं है पर शायद यह बड़ी जनसंख्या आधार कार्ड का लाभ लेने से अभी भी वंचित है। अब वक्त आ गया है कि अपने प्रदेश एवं पूरे देश में ऐसी अवैध घुसपैठियों के खिलाफ एक मुहिम चलाई जाए, साथ ही लोकतंत्र के सबसे बड़े त्यौहार यानी कि चुनाव से अवैध नागरिकों को वंचित रखा जा सके जिससे कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सके। आधार के अभाव में सरकार कुछ लोगों को मताधिकार से वंचित करने और नागरिकों की प्रोफाइल बनाने के लिये मतदाता पहचान विवरण का उपयोग करने में सक्षम होगी। वैसे भी एक त्रुटि मुक्त मतदाता सूची स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिये अनिवार्य है।
चुनाव सुधार पर सारगर्भित लेख।
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