Skip to main content

कोरोना संक्रमण के मध्य आगामी चुनाव


कुणाल भारती
(राजनीतिक एवं सामाजिक विश्लेषक)
चुनाव लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनतीहै। भारतीय संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से अनुच्छेद 329 तक निर्वाचन की व्याख्या की गई है। अनुच्छेद 324 निर्वाचनों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना बताता है। संविधान ने अनुच्छेद 324 में ही निर्वाचन आयोग को चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी दी है। वर्तमान में कोरोना संकट के दौरान पूरे भारत में लॉकडाउन की स्थिति बनी हुई है| आवाजाही पर पाबंदी है, सामूहिक स्थानों पर भीड़ लगाने की अनुमति नहीं दी गई है तथा किसी तरह के भी राजनीतिक कार्यक्रमों को करने के लिए मना किया गया है| इन विपरीत परिस्थितियों में देश में अभी चुनाव कराना अप्रासंगिक लग रहा है| 

मार्च के आखिरी सप्ताह में जब देश में पहली बार लॉक डाउन लाया गया उसी दौरान देश भर में 55 राज्य सभा सीटों के लिए चुनाव होना था| कई सीटों पर तो निर्विरोध उम्मीदवारी की वजह से चुनाव प्रक्रिया पूर्ण कर लिया गया, परंतु कुछ सीटों पर पेच फंस गई| चुनाव आयोग ने उस वक्त उचित फैसला लेते हुए इन सीटों पर चुनाव टाल दिया| बहरहाल कुछ वैसा ही हाल बिहार के 29 विधान परिषद सीटों की है| कोरोना वायरस से संक्रमण के खतरे के कारण तत्काल प्रभाव से चुनाव आयोग द्वारा इन सीटों पर चुनाव प्रक्रिया को टाल दिया गया है तथा उपयुक्त समय आने पर इन सीटों पर चुनाव कराया जाएगा| इसी वजह से जहां बिहार विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या 75 थी वह वर्तमान में घटकर 46 हो गयी है| निसंदेह इसका दुष्प्रभाव लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पूर्ण रूप से पड़ेगा| कानून बनाने वाले प्रतिनिधि का ही अगर चयन नहीं हो पाएगा तो विधायिका लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ कैसे बना पाएँगी| खैर, भारतीय लोकतंत्र में ऊपरी सदन  यानी कि राज्यसभा और विधान परिषद की भूमिका एक मायने में काफी बड़ा भी है, तो काफी सीमित भी है| उच्च सदन के उम्मीदवारों के चयन नहीं होने की वजह से या फिर इन सदस्यों के अघोषित चुनावी परिणाम से सरकार चलाने में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती है| भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 के मुताबिक संसद में केंद्रीय मंत्रिमंडल संसद के निचले सदन यानी कि लोकसभा के प्रति उत्तरदाई है| वही अनुच्छेद 164 के मुताबिक राज्य सरकारें विधानसभा के प्रति उत्तरदाई है| 

अमेरिकी चुनाव

दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका और उस पर राज करने वाला व्यक्ति समूचे विश्व का सर्वाधिक ताकतवर शख्स माना जाता है। भारत की तरह ही अमेरिका भी एक लोकतांत्रिक देश है, ऐसे में 3 नवंबर को होने वाली मतगणना बेहद अहम होगी। फिलहाल पूरी दुनिया कोरोना वायरस की मार झेल रही है। इस अनजान बीमारी से मरने वालों की तादाद भी अमेरिका में ही अधिक है। ऐसे में कयास तो ये भी लगाए जा रहे थे कि इस बार राष्ट्रपति चुनाव को आगे बढ़ाया जाएगा | अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप चुनाव को टालने के पक्ष में नहीं है और वह चुनाव को निर्धारित समय में ही कराना चाहते हैं, जबकि मुख्य विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी वर्तमान परिस्थितियों को देखकर चुनाव कराने के पक्ष में नहीं है| असल में ट्रंप संकट के दौर में राष्ट्रवाद को एक अहम मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ना चाहते हैं, इसीलिए वह लगातार कोरोना के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं| 

संक्रमण के दौर में दक्षिण कोरिया में हुआ सफल चुनाव ( दक्षिण कोरिया मॉडल)

कोरोना वायरस पूरी दुनिया में बर्बादी मचा रहा है, ज्‍यादातर देश संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन का सहारा ले रहे हैं| ऐसे में दक्षिण कोरिया ऐसा पहला देश बना जहां संसदीय चुनाव के दौरान लोग मतदान के लिए घरों से बाहर निकले और मतदान केंद्रों पर लंबी कतारें लगी| हालांकि, दक्षिण कोरिया ने मतदान के लिए जबरदस्‍त इंतजाम किए| वोट डालने पहुंचे लोगों की सबसे पहले थर्मल स्‍क्रीनिंग की गई, अगर किसी व्‍यक्ति का टैम्‍प्रेचर सामान्‍य से ज्‍यादा निकला तो उसे मतदान के लिए दूसरी जगह पर ले जाया गया| मतदान के बाद उसका कोरोना टेस्‍ट कराया गया| फिर पूरे मतदान केंद्र को सैनेटाइज किया गया| दक्षिण कोरिया ने चुनाव प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए सरकारी कर्मचारियों के साथ ही युवाओं की मदद भी ली है | टीआरटी वर्ल्‍ड की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने युवाओं को चुनाव ड्यूटी करने के बदले अनिवार्य सैनिक सेवा करने से छूट दे दी है| इन युवकों ने देश भर में बनाए गए कुल 14,000 मतदान केंद्रोंको सैनेटाइज करने का काम किया है| युवाओं की ये टीम सुनिश्चित कर रही है कि मतदाता वोटिंग सेंटर्स पर सोशल डिस्‍टेंसिंग का पूरी तरह पालन करें और एक दूसरे से कम से कम 1 मीटर की दूरी पर खड़े हों। माना जा रहा है कि कोरोना वायरस से राष्ट्रपति मून की सरकार को बड़ा राजनीतिक फायदा मिला है| दक्षिण कोरिया की सरकार ने इस चुनाव में कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों के मतदान का भी विशेष ध्यान रखा है| उन्हें 23 से 28 मार्च के बीच डाक से मतदान करने का विकल्प दिया गया था| जब ये समय समाप्त हो गया तो आठ जगह पर इन लोगों के लिए अलग मतदान केंद्र बनाए गए, जहां चुनाव कार्यकर्ताओं ने प्रोटेक्टिव सूट पहनकर मतदान करवाया ,संक्रमित मरीजों के लिए अलग मतदान केंद्र की व्यवस्था की गई थी| दक्षिण कोरिया के चुनाव भारत की तरह बहुत शोरगुल वाले होते हैं| राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता लोगों का ध्यान खींचने के लिए म्‍यूजिक का सहारा भी लेते हैं| सड़कों पर हर जगह लाउड स्पीकर और पोस्टरों से लदे वाहन नजर आते हैं। इस बार चुनाव में इस तरह से प्रचार करने से परहेज रखा गया। उम्मीदवारों को सलाह दी गई थी कि वो हर समय मास्क पहनें और हाथ ना मिलाएं| सबसे रोचक तथ्य यह है कि इस बार की दक्षिण कोरिया के आम चुनाव में वर्ष 2016 के मुताबिक ज्यादा मतदान हुए हैं तथा वोटिंग प्रतिशत में पिछली दफा के मुताबिक इजाफा भी देखा गया है| 

बिहार चुनाव 
वर्ष 2020 में देशभर के राजनीतिक गलियारों में निगाहें बिहार विधानसभा चुनाव पर टिकी है| बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है जहां इस वर्ष चुनाव होना है। इसके पूर्व फरवरी महीने में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए थे| राजनैतिक पंडितों की माने तो बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे भविष्य में आने वाले चुनाव पर गजब का प्रभाव डालेंगे| अगले वर्ष पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरला, असम और पांडिचेरी में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके नतीजे बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम से प्रभावित होंगे| अब सवाल यह उठता है की इन विपरीत परिस्थितियों में बिहार में विधानसभा चुनाव निर्धारित समय में कैसे कराया जाए। यह चुनाव अक्टूबर-नवंबर माह में होने थे जो अभी संकट के बादल से घिरे हुए हैं| अगर यह चुनाव टलता है तो संवैधानिक रूप से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा। यह पूर्ण रूप से संविधान में स्पष्ट है कि अगर 5 साल के अवधि के दौरान प्रदेश में नई सरकार के गठन नहीं हुई तो उन परिस्थितियों में वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा| अब सोचने वाली बात यह है कि क्या वर्तमान में बिहार में एनडीए की सत्ताधारी भाजपा - जदयू की सरकार इसके लिए तैयार है। 7 करोड़ मतदाता वाले इस राज्य में कोरोना संकट के दौरान या फिर उसके बाद चुनाव कराना चुनाव आयोग के लिए सबसे बड़ी चुनौती है| बिहार की गिनती पिछड़े राज्यों में होती है, यहां का एक बड़ा क्षेत्र आज भी नक्सली प्रभावित है, मतदाता जागरूक नहीं है तथा तकनीकी संसाधन का अभाव है। इन परिस्थितियों में चुनाव आयोग के लिए वर्तमान दृष्टिकोण को देखते हुए चुनाव कराना किसी बड़े चैलेंज से कम नहीं है| 

अब सवाल ये उठता है कि आखिर कोरोना संकट के बीच या उसके बाद होने वाले पहले चुनाव की तस्वीर कैसी होगी | चुनावी रैलियां होंगी या नहीं और होंगी तो कैसे होंगी| नेता अपने वोटरों से जनसंपर्क करेगें या सिर्फ मैसेज पर वोट मांगेंगे और अगर जनसंपर्क करेंगे तो कैसे? क्या चुनाव में वैसे ही वादे होंगे जो पहले होते थे? क्या इस चुनाव में भी पैसे और गिफ्ट बांटे जाएंगे? सवाल कई हैं और सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या देश का चुनाव आयोग इस माहौल में चुनाव कराने के लिए तैयार है? अब तक चुनाव आयोग लोगों को मतदान पर्ची तक उपलब्ध कराता रहा है| यहां आयोग की सबसे बड़ी चिंता ईवीएम को लेकर होनी चाहिए, क्योंकि ईवीएम में एक ही बटन सैकड़ों बार दबाया जाता है और हर वोटर के पहले उसे सेनेटाइज करना भी संभव नहीं है | ऐसे में चुनाव आयोग के सामने चुनाव से पहले नए विकल्प की तलाश बड़ी चुनौती होगा| इसी तरह एक ही बोतल की स्याही से हर मतदाता की उंगली पर निशान लगाया जाता है| कोरोना के इस दौर में ये भी संभव नहीं है| लगातार मतदान प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश कर रहे चुनाव आयोग के सामने इस बार मतदान प्रतिशत को कायम रखना भी बड़ी चुनौती होगा| 

ऐसा नहीं है कि चुनौती सिर्फ चुनाव आयोग के सामने है, चुनौतियां राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवारों के सामने भी रहेंगी| बिहार जैसे राज्य में जहां रैलियों का ख़ासा महत्व है, ऐसे में पार्टियां अपनी राजनीतिक रैलियां कैसे करेंगी? नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार तक भीड़ के सहारे अपनी ताकत दिखाने वाले नेता कैसे जनता तक अपनी बात पहुंचा पाएंगे? क्योंकि बिना प्रचार चुनाव की बात ही बिहार की राजनीत में बेमानी है | उम्मीदवारों के सामने चुनौती है कि पैर छूकर आशीर्वाद लेने की राजनीति में दो गज से नमस्ते करने पर क्या जनता का आशीर्वाद मिलेगा? इन चुनावों में सोशल डिस्टेंसिंग बरकरार रख पाना किसी चुनौती से कम नहीं है| कई लोगों ने कयास लगाई है कोरोना के संकट के इस दौर में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ेगा क्योंकि मतदाताओं तक पहुंचने का सहारा अब तकनीक ही होगी| साथ ही चुनाव आयोग भी तकनीक के सहारे ही कोरोना से लड़ने की कोशिश करेगा| सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आने वाले चुनाव में काफी महत्वपूर्ण हो जाएगा क्योंकि लोग इसी के माध्यम से उम्मीदवारों से सीधे तौर पर जुड़ सकेंगे तथा उम्मीदवार भी पार्टी के कार्यकर्ता एवं मतदाताओं से सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बातों को पहुंचा पाएंगे| कुछ जानकारों का मानना है कि कोरोना के बाद होने वाले चुनाव में अब टीवी चैनलों के माध्यम से भी राजनीतिक दले मतदाताओं से संवाद कर पाएगी तथा उन तक अपनी बात पहुंचा पाएगी| मेसेज, प्री-रिकॉर्डेड कॉल, जैसी तकनीक जो पहले इस्तेमाल होती थी उसमें भी अब बढ़ोतरी होगी, यानी इस चुनाव में अब तक हुए चुनावों से ज्यादा तकनीक का इस्तेमाल होगा|

जब प्रचार से लेकर मतदान तक हर जगह कोरोना का खौफ है, तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या देश में आनलाइन वोटिंग कराई जा सकती है क्योंकि दुनिया के कई देशों में इसकी व्यवस्था और भारत में भी समय समय पर इसकी मांग होती रही है। ऐसे में क्या वर्तमान कोरोना संकट ही ऑनलाइन चुनाव कराने के लिए सही समय है | परंतु सोचने वाला यह विषय भी है क्या हम अभी ऑनलाइन वोटिंग के लिए तैयार हैं| भारत में असाक्षरता आज भी एक अभिशाप बना हुआ है, ऐसे में उन वोटरों को तकनीक के माध्यम से वोटिंग करा पाना संभव नहीं दिखाई देता| ऑनलाइन वोटिंग में साइबर क्राइम एवं हैकिंग का खतरा भी बना रहेगा। वैसे भी जहां एक तरफ विपक्ष लगातार ईवीएम से वोटिंग का विरोध करता आया है क्या वह ऑनलाइन वोटिंग जैसी सुविधाओं के लिए तैयार हो पाएगा| इसके साथ ही बिहार जैसे राज्यों में तकनीकी संसाधन एवं इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है, इतने कम समय में क्या चुनाव आयोग ऑनलाइन वोटिंग के लिए पूरी तैयारी कर पाएगा|

कोरोना संक्रमण को देखते हुए बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील मोदी ने ऑनलाइन वोटिंग की संभावना जताई है, वहीं विपक्षी दल के नेता आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा कि भारत में ऑनलाइन वोटिंग संभव नहीं है| एनडीए की सहयोगी दल जदयू ने भी ऑनलाइन वोटिंग का विरोध किया है| अब समझना यह होगा कि क्या चुनाव आयोग दक्षिण कोरिया मॉडल को आने वाले चुनाव में इस्तेमाल करता है क्योंकि संकट के इस दौरान में वही मॉडल एक सार्थक दिखाई दिया पर वह बिहार जैसे राज्यों में कितना सक्षम होगा यह समझने वाली बात है | चुनाव आयोग ने भी दक्षिण कोरिया मॉडल के ऊपर काम कर रही है एवं उसकी समीक्षा कर रही है| गौरतलब है कि दक्षिण कोरिया दुनिया का ऐसा पहला देश बना है जिसने कोरोना महामारी के बीच चुनाव कराया| सभी मतदान केंद्रों को लगातार सैनिटाइज करने की प्रक्रिया चलाई गई तो हाथ में दास्ताने, मास्क और सैनिटाइजर अनिवार्य तौर से मतदाताओं के पास था| सभी मतदाताओं के बीच सुरक्षित दूरी सुनिश्चित तो की ही गई, सबके शरीर का तापमान रिकॉर्ड करने के बाद ही मतदान केंद्र के भीतर जाने की अनुमति मिली| अगर किसी का तापमान निर्धारित सीमा से ऊपर था तो उसे अलग मतदान केंद्र पर ले जाया गया जो खास तौर से इसी तरह के मामले को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था | चुनाव के समय करीब 2800 कोरोना मरीज थे जिसे ई-मेल या जाने की स्थिति में हो तो विशेष तौर से बनाए गए मतदान केंद्र पर जाकर वोट कर सकता था| जबकि खुद को क्‍वारंटाइन रखने वाले 13 हजार से ज्यादा लोगों को मतदान के बाद बैलेट पेपर से मतदान की छूट दी गई | यानी दक्षिण कोरिया ने पूरे एहतियात और सैनिटाइजेशन की प्रक्रिया को सख्ती से पालन कराकर चुनाव को अंजाम दिया|

कोरोना संकटकाल और बिहार की वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य

वर्तमान में बिहार में एनडीए की भाजपा- जदयू -लोजपा की संयुक्त सरकार है| निसंदेह 2019 के अगर लोकसभा चुनाव के परिणाम का आकलन किया जाए तो बिहार के 243 विधानसभा सीटों में राजग 2019 लोकसभा चुनाव में 222 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई हुई थी| विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है, महागठबंधन में सहयोगी दलों के बीच आपसी मतभेद बहुत ज्यादा है और उचित नेतृत्व की कमी साफ दिखाई दे रही है| अब क्या विपक्ष जहां पहले से और ज्यादा कमजोर है वह तकनीक के माध्यम का सहायता लेकर साउथ कोरिया मॉडल को अपनाते हुए चुनाव में जाना पसंद करेगा| अगर विपक्ष के वोटर के समीकरण को समझा जाए तो उसकी सबसे बड़ी ताकत मुस्लिम यादव वोटों का समीकरण है और यह ऐसा वर्ग है जहां आज भी आधुनिक तकनीक अपनी पैर नहीं फैला पाई है। उसके साथ ही विपक्ष का एक बड़ा मतदाता समूह बिहार के ग्रामीण परिवेश में रहता है। शायद इन्हीं वजहों से विपक्ष नए तकनीकी चुनावी मॉडल से भयभीत है | वहीं भाजपा के लिए वर्तमान दृष्टिकोण से यह लाभदायक है कि उसके अधिकांश वोटर शहरों में रहते हैं, उनके मतदाता बुद्धिजीवी हैं एवं तकनीकी रूप से सक्षम है। भाजपा का संगठन जमीनी स्तर काफी मजबूत है, चाहे शहर हो या गांव भाजपा अपने संगठन के माध्यम से अपनी बातों को जनता तक पहुंचा पाने में सक्षम रहेगा| परंतु सत्ता दल के लिए वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती अगर कुछ है तो वह बिहार लौटे लगभग 25 लाख श्रमिक मजदूर, जो दूसरे राज्यों से वापस अपने घरों को आए हैं| उनके पास अब रोजगार नहीं है , वर्तमान संकट के इस दौर में आने वाले कुछ दिनों तक अपने गांव पर ही रहेंगे | यह ऐसा वर्ग है जो बिहार चुनाव को पूरी तरह से प्रभावित कर सकता है। यह सभी कामगारों की संख्या इतनी बड़ी है की इन्हें बिहार के असंगठित या संगठित अर्थव्यवस्था में जोड़ना संभव नहीं दीख पा रहा है| अगर वर्तमान की सरकार इन श्रमिक मजदूरों को आने वाले दिनों में अभिमानी जीवन देने में सक्षम हो पाती है तो उन्हें आने वाले चुनाव में इसका बड़ा लाभ मिलेगा| चर्चा का एक बड़ा विषय है या यह सारे कामगार पिछले 30 वर्षों में बिहार से पलायन कर बाहर के राज्यों में बेहतर जीवन के लिए गए थे| अब समझना यह जरूरी है की ये किन परिस्तिथियों में पलायन को मजबूर हुए| गौरतलब है की 1990 से 2005 तक बिहार में रोजगार की स्थिति एकदम नहीं थी और उस वक्त तक मनरेगा जैसी योजनाएं भी उपलब्ध नहीं थी जो इन श्रमिकों को बिहार में रोक सके| इसलिए इन चुनावों में 15 साल बनाम 15 साल यानी कि लालू - राबड़ी राज बनाम भाजपा -  जदयू राज चर्चा का विषय रहेगा| साल 2005 के बाद जब बिहार में पहली बार राजग की सरकार बनी तो बड़े पैमाने पर विकासात्मक कार्य यहां देखे गए। इन्हीं वजह से यहां रोजगार की स्थिति भी उत्पन्न हुए, कृषि आधारित रोजगारको भी बढ़ावा दिया गया परंतु बिहार इस दौरान छोटे व मझोले उद्योगों को यहां बढ़ावा नहीं दे पाया। बड़े कल-कारखाने की स्थापना भी नहीं हुई| कोई भी बड़ा निवेशक बिहार में निवेश करने से परहेज किया| हालांकि इस दौरान बिहार में कानून व्यवस्था में जबरदस्त सुधार आया तथा गरीबों को सामाजिक सुरक्षा भी प्रदानकी गई| फिर भी उद्योग यहां पैर नहीं फैला पाया जिसकी वजह से पहले से चले आ रहे हैं पलायन को बिहार रोक नहीं पाया| कोरोना वायरस से प्रभावित बिहार की अर्थव्यवस्था की स्थिति पहले से खराब है जिसका असर आनेवाले चुनाव में साफ रूप से दिखाई देगा| इन दिनों सरकार संक्रमण को खतरे को देखते हुए जिस प्रकार सजग है और कोशिश कर रही है कि वह अधिक से अधिक राहत लोगों को प्रदान करें उससे चुनाव में वर्तमान सत्ताधारी पार्टीको अवश्य लाभ मिलेगा | राजनैतिक, सामाजिक एवं पूर्ण के नतीजों का आकलन किया जाए तो बिहार की जनता का आज भी एक बड़ा विश्वास भाजपा - जदयू गठबंधन पर है तथा जिन श्रमिक मजदूरों की बात की गई है वह आज भी यह मानते हैं कि उनके बिहार से बाहर पलायन का मुख्य कारण 15 साल की लालू -राबड़ी की अराजकता वाली सरकार का है |

Comments

  1. लाखो की संख्या में जो प्रवासी मजदूर बिहार लौट रहे है क्या यह बिहार सरकार की विफलताओं का जीता जागता प्रमाण नहीं है?क्या नितीश बीजेपी की जोड़ी को पर्याप्त समय नहीं मिला था कि वह उनके पिछली सरकारों की गलत नीतियों की बेड़ियों को खोल बिहार को विकास की और ले जाये।क्यों नितीश जी के आने के बाद भी पलायान जारी रहा? यह सब कुछ प्रश्न है जिनका जवाब सारे बिहारवासी अपने मुख्यमंत्री से पूछ रहे है?

    ReplyDelete
  2. अच्छा लिखे हैं, अमेरिका से लेकर बिहार तक दक्षिणी कोरियाई माँडल मे चुनाव करवा सकता है।

    ReplyDelete
  3. बहुत अच्छा विवरण प्रस्तुत किया है आपने इस आलेख में। बाहर के देशों से इस कालखंड में चुनाव कराये जाने के उपायों का विवरण भी नयी दिशा दिखाता है।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

डेहरी के मतदाताओं के नाम खुला पत्र।

साथियों , २०२० के चुनाव में आपने राजद पार्टी के उम्मीदवार फतेह बहादुर कुशवाहा को आशीर्वाद दिया और वो लोकतंत्र के मंदिर में विधायक के रूप में अपना योगदान दे रहे हैं। जिस प्रकार देश की संसद भारतीय लोकतंत्र का मंदिर है , बिहार विधानसभा भी बिहार के सभी निवासियों के लिए पवित्र मंदिर है और हो भी क्यूँ न , लोकतंत्र की जननी भी तो बिहार की गौरवशाली धरती ही हैं जहां लिच्छवि और वैशाली गणतंत्र मानव सभ्यता को लोकतांत्रिक व्यवस्था का सफल संचालन कर के विश्व के राजतंत्र व्यवस्था के सामने आदर्श प्रस्तुत कर रहे थे। अब मंदिर की गरिमा होती है और लोकतांत्रिक मंदिर की गरिमा को बनाये रखने की ज़िम्मेदारी सबसे पहले तो वहाँ निर्वाचित सदस्यों पर होती है। अगर सदस्य इस कर्तव्य का निर्वहन करने में असफल रहते हैं तो फिर ये ज़िम्मेदारी समाज को अपने हाथों में लेनी होती है।   आज ये पत्र लिखने का आशय ये हैं कि आपके विधायक ने सनातन संस्कृति , सभ्यता व हिंदू धर्म में वि

एक देश-एक चुनाव

कुणाल भारती राजनीतिक एवं सामाजिक विश्लेषक 15 अगस्त 1947 के दिन भारत को बरतानिया सरकार के हुकूमत से आजादी मिली| तकरीबन 2 वर्ष से अधिक के कड़ी मशक्कत और रायसिना हिल्स में हुए रात दिन संविधान सभा बैठकों के बाद विश्व का सबसे बड़ा संविधान भारत को मिला, निश्चित रूप से भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाया| 26 जनवरी 1950 को भारत एक नए गणतंत्र के रूप में दुनिया में अपनी नई पहचान बनाई तथा संविधान पारित हुआ | लोकतांत्रिक व्यवस्था से इतने विशाल देश को चलाने के लिए प्रतिनिधि निकाय की भी आवश्यकता पड़ी, इन्हीं वजह से उसी प्रतिनिधित्व को पूरा करने के लिए देश में पहली बार 1951-52 में आम लोकसभा चुनाव हुए ताकि भारत की जनता अपने इक्षा मुताबिक अपनी सरकार का चयन कर सके| गौरतलब है की वर्तमान में भारत में तीन स्तरीय शासन व्यवस्था है | भारत की चुनाव प्रणाली जर्मन सिस्टम पर आधारित है| प्रथम चुनाव में देश में लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव साथ साथ हुए तथा यह सिलसिला अगले डेढ़ दशक तक यानी कि 1957,1962 और 1967 के चुनाव में चलता रहा,लेकिन उसके बाद राज्य सरकारें अपने 5 साल के कार्यकाल से पहले ही गिरने लगीं और

देव भूमि बना भोग भूमि

कुणाल भारती राजनीतिक एवम सामाजिक विश्लेषक प्रकृति का विनाश कोई नई बात नहीं है , मानव अपने लोभ में इतना अंधा हो चुका है कि उसे भले बुरे का ज्ञान भी नहीं रहा । इंसान ने बहुत   पहले ही प्राकृतिक परस्थतकी और   जैव विविधता का हनन करना शुरू कर दिया था। जिसका अभी सबसे बड़ा उदाहरण है   जोशीमठ जिसकी स्थापना   8 वीं सदी में धर्मसुधारक   आदि शंकराचार्य   के द्वारा ज्ञान के उपरांत प्रथम मठ की स्थापना की गई थी   जो इन दिनों त्रासदी के लिए पूरे विश्व में चर्चित है, लगभग 600 घरों में दरार आ गई है तथा भूस्खलन के बाद जमीन के अंदर से पानी भी सीज रही है। जोशीमठ हिमालय के कोख में बसा वह क्षेत्र है जो सनातन धर्म के पौराणिक कथाओं में प्रसिद्ध है।   राज्य के अन्य महत्त्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थलों के अलावा यह शहर बद्रीनाथ , औली , फूलों की घाटी (Valley of Flowers) एवं हेमकुंड साहिब की यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिये रात्रि विश्राम स्थल के रूप में भी जाना जाता है। जोशीमठ , जो सेना क