कुणाल भारती राजनितिक और सामाजिक विश्लेषक |
विश्व के प्राचीनतम और सफलतम लोकतांत्रिक देशों के निर्माण में दक्षिणपंथी पार्टियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अपनी सभ्यता और संस्कृति से समन्वय बनाते हुए आर्थिक उदारवाद पर चलना ही दक्षिणपंथ का मूल सिद्धांत है। भारत के आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में बीजेपी और एनडीए की जीत दुनिया में हो रहे दक्षिणपंथी उभार से अलग थलग अथवा कोई अप्रत्याशित नतीजे नहीं हैं, बल्कि पूरी दुनिया में हो रहे दक्षिणपंथी उभार का एक हिस्सा ही है। मोदी अमेरिका से लेकर हंगरी, फ्रांस, फिलीपीन्स, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, जापान, ग्रीस, ब्राजील, यूके जैसे अनेक देशों में उभर रहे दक्षिणपंथी उभार के नायकों में से ही एक हैं।
असमानता चाहे सामाजिक संरचना के कारण ही क्यों न हो, दक्षिणपंथी चिंतन उसे प्रकृतिक नियमों (नेचुरल लॉ) के अनुसार मानता है और उसे विकास के लिये अवश्यक समझता है। यहाँ विकास का मतलब केवल आर्थिक विकास नहीं है, अपितु इसमें बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास भी समाहित हैं। दक्षिणपंथी सोच यह है कि व्यक्ति जब स्वयं से अधिक उन्नत व्यक्ति को देखेगा, तभी उसके जैसा बनने के प्रयास करेगा। दक्षिणपंथी चिंतन सबको विकसित होने के समान अवसर देने का हिमायती है, किन्तु इन अवसरों का लाभ उठाने की व्यक्ति अथवा समूह की भिन्न क्षमताओं को एक स्वभाविक एवं अपरिहार्य स्थिति मान कर आगे बढ़ने में विश्वास रखता है। दक्षिणपंथी आर्थिक चिंतन एक शुद्ध पूंजीवादी चिंतन है, जो कीमतों को बाज़ार के भरोसे छोड़ देने तथा प्रतिबंध-विहीन मुक्त व्यापार में विश्वास रखता है।
दरअसल, पिछले तीन दशकों में कॉरपोरेट विकास की भूमंडलीय अवधारणा से पैदा हुई विषमताओं और असंतोष से पैदा हुई रिक्तता को भरने के क्रम में दक्षिणपंथी नायकों की इस बढ़ती हुई भीड़ को ना केवल मान्यता, बल्कि जनसमर्थन भी हासिल हो रहा है। हालांकि दक्षिणपंथ के उभार का सबसे रोचक परंतु त्रासद पहलू यह है कि जिस कॉरपोरेट विकास से पूरी दुनिया में आर्थिक और सामाजिक विषमता बढ़ रही है, उस व्यवस्था से असंतोष बढ़ रहा है, और उसी से बचने की इच्छा की वजह से राजनीतिक बदलाव हो रहे हैं, वही कॉरपोरेट दुनिया इन दक्षिणपंथी नायकों की पोषक और प्रायोजक भी है। इसीलिए कहा जाना चाहिए कि पूरी दुनिया में उभरते और बढ़ते तथाकथित मजबूत जन नायकों की बढ़ती भीड़ में अनायास अथवा अप्रत्याशित कुछ भी नहीं, यह कॉरपोरेट विकास की राजनीतिक व्यवस्था को अपने अधीन करने की वैश्विक योजना का हिस्सा भर है।
इस लोकतंत्र की तरफ बढ़ने की मौखिक और व्यवहारिक घोषणाओं में 2010 के बाद अचानक तेजी आई है। कॉरपोरेट विकास से बढ़ती आर्थिक विषमताओं और सामाजिक असमानताओं को इन दक्षिणपंथी नायकों ने पुराने स्थापित उदार लोकतंत्र की विफलताओं की तरह पेश करते हुए नए मजबूत शासन अथवा सुशासन का नैरेटिव गढ़ते हुए मुखर तरीके से सत्ता के केन्द्रीकरण पर आधारित तथाकथित सुशासन की नई संकल्पना को आगे बढ़ाने का काम किया है। इस नई तथाकथित विकासवादी व्यवस्था की संकल्पना को आगे बढ़ाने और पुरानी उदारवादी लोकतांत्रिक प्रणाली को बदनाम करने का इन दक्षिणपंथियों का एक विश्वव्यापी डिजाइन है।
हालांकि विकास के इस पूरे वैश्विक घटनाक्रम में दिलचस्प समानताएँ हैं। सबसे पहले परिवर्तन के इस दौर की शुरुआत 90 के दशक के बाद दुनिया में विकास के समाजवादी ब्लॉक के विखंडन और कॉरपोरेट विकास की भूमंडलीय अवधारणा में तेजी आने के साथ हुई| दुनिया के बड़े हिस्से में नव उदारवादी और पुराने मध्यमार्गी उदारवादी लोकतंत्र के भीतर दक्षिणपंथी आर्थिक नीतियों को लागू करने की शुरुवात हुई और उसके बाद 90 के दशक के खत्म होने तक उन नीतियों के खिलाफ पूरी दुनिया में एक वामपंथी रूझान वाले प्रतिरोध की शुरुआत हुई, जिस कारण 90 के दशक के खत्म होने और नई सदी के शुरू होने का दौर लेटिन अमेरिका से लेकर यूरोप, पूर्वी यूरोप और एशिया में वामपंथी गिराओ का दौर रहा।
परंतु दुर्भाग्यवश, 90 के दशक से शुरू हुए उस वामपंथी प्रतिरोध के पास नव उदारवादी आर्थिक नीतियों का कोई व्यवहारिक विकल्प नहीं था। ऐसा विकल्प जो उत्पादक शक्तियों के विकास का अवरोध ना होकर उत्पादक शक्तियों के विकास की गति को तेज करे। यहाँ तक कि इस वामपंथी प्रतिरोध के नेतृत्व में भूमंडलीकरण के विरोध को लेकर भी भ्रम था और देखा जाए तो प्रतिरोध के नेतृत्व ने भूमंडलीकरण का विरोध नहीं बल्कि इसके पूंजीवादी अथवा कॉरपोरेट रूप का ही विरोध किया। इन अर्थों में यह वामपंथी रूझानों वाला प्रगतिशील शक्तियों का प्रतिरोध और उभार कोई ठोस वैकल्पिक प्रतिरोध नहीं होकर कुछ कल्याणकारी उपायों के साथ अजमाया हुआ प्रतिक्रियात्मक विरोध बनकर रह गया और भूमंडलीकरण के इस विकल्पहीन प्रतिक्रियात्मक विरोध में राष्ट्र-राज्य की अवधारणा को बचाने और राष्ट्रवाद की गूंज ही अधिक सुनाई दी। 90 के दशक के बाद का यह ऐसा समय था जब दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी और वामपंथी भूमंडलीकरण के विरोध एक ही कतार में खड़े नजर आ रहे थे।
वर्तमान के दिनों में भारत में आज लाल क्रांति के समर्थक, वाम दल के लोग भी भगवा रंग के नशे में डूब गए हैं| शायद इसीलिए कहा जाता है कि परिवर्तन ही संसार का नियम है। पर ऐसा नहीं है कि यह रेखा लांघकर भगवा होने का खेल भारत में ही प्रभावी रहा हो पिछले चुनावों में अमेरिकी प्रगतिशील खेमे का मतदाता और अमेरिकी मजदूर वर्ग भी ठीक इसी राह पर चलकर ट्रम्प के खेमे में शामिल हो गया। उसे लगता था कि ट्रम्प पिछली सरकारों द्वारा आउटसोर्स किए गए रोजगार को वापस लाकर अमेरिकी मजदूर वर्ग को दुर्दशा से बाहर निकाल देंगे। ठीक यही स्थिति फ्रांस के मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग की हुई जहाँ फ्रांस का मजदूर वर्ग कुछ हद तक मेरी ली पेन के नेशनल फ्रंट के पीछे लामबंद होता दिखाई दिया।
दरअसल वामपंथ कोई परिभाषित धारणा लेकर नहीं आता| भारत की बात करें तो यह आदिकाल से ही लोगों की लैंगिक स्वतंत्रता मिली हुई थी। हमें प्रवासियों से कभी कोई दिक्कत नहीं रही| यूनानी, पारसी, युहुदी जैसे कई लोग यहाँ रहते हैं| मौत की सजा की बात करें तो भारत में जानवरों से भी दया का भाव रखा जाता है लेकिन देशद्रोह, आतंकवाद, बलात्कार जैसे मुद्दों पर मौत का सजा का विरोध करना यहाँ क्या तर्कसंगत है?
वामपंथ की विचारधाराएँ जैसे कि समानता राष्ट्र, धर्म और सरकार अलग-अलग, अर्थव्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप, स्वतंत्र व्यापार का विरोध, आदि जैसे विचारों के कारण ही लगभग 40 साल तक कांग्रेस सरकार चलाती रही। बाद के सालों में भारतीय राजनीति में सैद्धांतिक बदलाव देखने को मिले हैं।
भारत की बात करें तो कांग्रेस की विचारधारा 'सेंट्रल लेफ्ट' की है, आम आदमी पार्टी कांग्रेस से थोड़ी ज़्यादा लेफ्ट की तरफ, वामपंथी पार्टियाँ सीपीआई और सीपीएम हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा 'सेंटर राइट' की है वहीं शिवसेना थोड़ी-सी और राइट की तरफ है। अमूमन भाजपा और शिवसेना को एक्सट्रीमिस्ट कहा जाता है जबकि यह 'सेंटर राइट' है और इन्हें एक्सट्रीमिस्ट करने वाले वामपंथी स्वयं में एक्सट्रीम एक्सट्रीमिस्ट हैं। दक्षिण पंथ में शरणार्थियों को लेकर सख्त नीति है| इसी वजह से अमेरिका में अगर देखा जाए रिपब्लिकन पार्टी के डॉनल्ड ट्रंप ने मैक्सिको बॉर्डर बनाने की बात कही, मोदी सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों पर रोक लगाने की बात करती है, यूरोपियों देश जिनकी नीति सेंट्रल लेफ्ट की थी वह अब दक्षिणपंथी नीति अपनाते हुए अपनी इमीग्रेशन पॉलिसी सख्त कर रहे हैं।
लोग के जीवन और अर्थव्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप सीमित हो यह दक्षिणपंथ का मूल सिद्धांत है। राष्ट्र सर्वोपरि हो, जिस देश में निवास करते हो, उसी देश से प्यार करेंगे, राष्ट्रवादी विचारधारा ही दक्षिणपंथी राजनीति का एक सिद्धांत है। दक्षिणपंथी विचारधारा की बात की जाए तो यह विचारधारा हमेशा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दक्षिण पंथ में धर्म को विशेष दर्जा दिया गया है। परंतु दक्षिणपंथी राजनीति हमेशा सबका साथ सबका विकास की बात करती है तथा इस में अल्पसंख्यकों को कोई विशेष अधिकार नहीं होता है। निजीकरण की नीति दक्षिणपंथी विचारधारा आर्थिक क्षेत्र में निजी क्षेत्रों का बढ़ावा देती है स्वतंत्र बाज़ार की सोच को बढ़ावा देती है अब अगर भारत की बात की जाए तो निजीकरण की नीति कांग्रेस शासन में तब शुरू हुई थी जब हमारी अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा ने लगी थी। वर्तमान की सरकार की बात की जाए तो नीतियाँ मिश्रित रूप से देखी जा सकती है स्वतंत्र बाज़ार को लेकर दक्षिणपंथी विचारधारा है तो वही उज्वाला, जनधन, आयुष्मान, स्वच्छ भारत मिशन जैसी कल्याणकारी योजनाएँ समाज को मजबूती दे रही है। दक्षिणपंथी विचारधारा में जनता से टैक्स कम लेने की है इसलिए भारत में वर्तमान में जीएसटी से टैक्स रिफॉर्म का काम किया। दक्षिणपंथी संगठन एक कड़े कानून में यकीन करती है बलात्कार आतंकवाद जैसे मुद्दों पर मौत की सजा का भी प्रबल समर्थन करती है जबकि वामपंथी विचारधारा मौत की सजा के खिलाफ है। दक्षिणपंथी विचारधारा महिलाओं के सम्मान के लिए लड़ाई लड़ती है इसलिए हाल ही में ट्रिपल तलाक और हलाला के खिलाफ सरकार ने सख्त कानून बनाई.
भारत में मूलत: मध्य दक्षिणपंथी सरकार पहली बार 1998 में आई थी। वैसे तो 1996 में भी भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने का मौका प्राप्त हुआ था पर बहुमत के आंकड़े ना जुटाने के कारण वह सरकार 13 दिनों में गिर गई थी। 1998 में जब कई छोटी बड़ी पार्टियों को मिलाकर एनडीए बना था तब देश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने में सक्षम हुई| वैसे तो राज्यों में जनसंघ गठबंधन के साथ 1967 में सरकार बनाने में सफल हुई थी, परंतु वह सरकारें ज़्यादा दिनों तक चल नहीं पाई। गौरतलब है कि 1977 में जब देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो जनसंघ, जो उस वक्त जनता पार्टी का हिस्सा हो गयी थी, सरकार में भी रही| पर वह सरकार अपने 2 साल के कार्यकाल में सिर्फ़ अंतर्विरोध में घिरी रहे। 1980 में जनता पार्टी के बिखरने के बाद भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई। 1989 के चुनाव के नतीजे के बाद एक बार फिर से जब गैर कांग्रेसी सरकार वीपी सिंह के नेतृत्व में बनी तो उस वक्त भी भारतीय जनता पार्टी वीपी सिंह के सरकार को बाहर से समर्थन दीया। एक रोचक तथ्य यह भी है कि देश में ऐसा पहली बार हुआ था कि एक ही सरकार में दक्षिणपंथी विचारधारा भी थी और वामपंथी विचारधारा भी। एक गरम दल तो दूसरा नरम दल, गौरतलब था कि यह पूर्ण रूप से अस्वाभाविक गठजोड़ था जिस की गांठे तब ढीली हुई जब आडवाणी जी के नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन चला। पूरा देश शायद इस घड़ी की वर्षों से प्रतीक्षा कर रही थी तभी तो उस दौर में एक नारा लगा करता था "बच्चा बच्चा राम का, मातृभूमि के काम का"। बरहाल 1998 में भाजपा जब सरकार बनाई तो उसने वह कर दिखाया जो नरसिम्हा राव की सरकार करने में असफल रही थी। तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों को दरकिनार करते हुए अटल जी की सरकार ने तब परमाणु परीक्षण करके पूरे विश्व में भारत का लोहा मनवाया था। राष्ट्रवाद की बड़ी जीत यहाँ पर दक्षिणपंथी विचारधारा के रूप में हुई थी। वैसे वामपंथियों और कांग्रेसियों की साजिश की वजह से यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और महज 13 महीनों में गिर गई। तत्कालीन अटल बिहारी सरकार को गिराने के खलनायक तो काफी थे परंतु एक नाम काफी चर्चित रहा वह था, गिरधर गमांग का। वैसे देश की चुनी हुई सरकार को गिराने का साजिश आज तक चर्चा का एक विषय बना हुआ है। 1999 में दोबारा चुनाव हुआ, 20 से अधिक पाटिया एनडीए का हिस्सा बनी, भारतीय जनता पार्टी सर्वाधिक सीटों पर जीत हासिल हुई, एन डी ए सरकार बनाई, कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत सरकार चलाने का एक माध्यम तैयार हुआ। इस सरकार ने विकास की एक नई मिसाल रखी। देश आर्थिक रूप से मजबूत हुआ, अटल सरकार ने देश में सड़कों का जाल बिछाया, हर छोटे बड़े गांव को सड़कों से जोड़ा गया, देश प्रगति की राह पर था। उसी दौरान भारत ने करगिल युद्ध में पाकिस्तान को पराजित किया। कमोवेश सब कुछ वैसा ही हो रहा था जैसा कि दक्षिणपंथी विचारधारा कहती है। परंतु 2004 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी भारत उदय नारे के साथ चुनाव में उतरी अपने 5 वर्ष के काम को लेकर, पर शायद अपने काम को लोगों तक पहुंचाने के बावजूद उन्हें अपने समर्थन में ना ले पाई.
अगर वही 2014 की बात की जाए तो भाजपा पहले से अधिक मजबूत थी, नरेंद्र मोदी जी जैसे विकास पुरुष का चेहरा पार्टी के पास उपलब्ध था तथा उन दिनों कांग्रेस सरकार में हुई अराजकता, भ्रष्टाचार और आतंकवाद से हर भारतीय जूझ रहा था। महंगाई दर अपने चरम सीमा पर थी जिससे कि अर्थव्यवस्था की स्थिति में डामाडोल आई हुई थी। शायद लोगों ने चुनाव पूर्व ही मन बना लिया था कि 'अबकी बार दक्षिणपंथी सरकार'। दक्षिणपंथी सरकार हमेशा से विकास के लिए जानी गई है, राष्ट्रवाद के लिए जानी गई है, सामाजिक एकता के लिए जानी गई है, सशक्त शासन के लिए जाने गई है। वर्तमान में इन्हीं सिद्धांतों के अनुकूल देश में भारतीय जनता पार्टी कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार अपना काम कर रही है और शायद इसी का जीता जागता उदाहरण है पिछले दिनों कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करके सरकार ने जो साहसी कदम उठाया है वह काफी सराहनीय है। सरकार ने महिलाओं के सम्मान के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है, मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए सरकार ने ट्रिपल तलाक जैसे नियमों के खिलाफ कठोर कानून लाया जिससे कि मुस्लिम महिलाओं को समाज में सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिया है। सरकार ने गरीब सवर्णों को आरक्षण दे कर उन्हें भी समाज के मुख्यधारा से जोड़ा है। देश प्रगति की राह पर है और एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में पूरी दुनिया के सामने आया है। वर्तमान सरकार शुरुआत से ही दलितों और पिछड़ों के लिए लड़ाई लड़ती आई है और इसी एजेंडे के साथ काम करती है कि समाज के वंचित वर्ग को समाज से जुड़ा जा सके। सरकार ने अनेक कल्याणकारी योजनाएँ देशवासियों के लिए लाया है जोकि किसी धर्म या जाति विशेष के लिए नहीं है। सरकार का मूल एजेंडा है सबका साथ सबका विकास तथा सबका विश्वास, वर्तमान सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है। इसी एजेंडे पर काम करते हुए मोदी सरकार रोजाना देश में कई नई प्रयोग कर रही है जिससे कि भारत उन्नति की राह पर पहुंचे। बीते दिनों किए गए जितनी भी गतिविधियाँ सरकार द्वारा हुई है वह सारी गतिविधियाँ पूर्ण रूप से दक्षिणपंथी विचारधारा के विचारों पर चलते हुए हुई है।
आश्चर्य की बात यह रही है कि जो दक्षिणपंथी लहर सम्पूर्ण एशिया में चल रही थी वह यूरोप में भी पहुंच गई. यूरोप जिसे मध्यमार्गी समझा जाता है उस पर दक्षिणपंथियों के प्रभाव ने विश्व को अचंभित कर दिया है। गौरतलब है कि वर्तमान के दौर में मध्य दक्षिणपंथी विचारधारा या राजनीति विकास का एक प्रतीक बन चुका है। शायद इन्हीं वजहों से वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी भारतीय राजनीति के लिए एकदम उपयुक्त है क्योंकि पार्टी की विचारधारा मध्य दक्षिणपंथ की है जो कि राष्ट्र को निरंतर प्रगतिशील बना रही है।
सारगर्भित लेख कुणाल जी । अपनी सभ्यता और संस्कृति से समन्वय बनाते हुए आर्थिक उदारवाद पर चलना ही दक्षिणपंथ का मूल सिद्धांत है। भारत के आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में बीजेपी और एनडीए की जीत दुनिया में हो रहे दक्षिणपंथी उभार से अलग थलग अथवा कोई अप्रत्याशित नतीजे नहीं हैं, बल्कि पूरी दुनिया में हो रहे दक्षिणपंथी उभार का एक हिस्सा ही है।
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