Shishu Ranjan चुनावी महापर्व की शुरुवात हो चुकी है। हर दल अपने अपने हिसाब से दमखम से चुनावी जंग में शामिल हो चूका है। इसके परिणामस्वरुप तरह तरह के हथियार, यानी की आरोप-प्रत्यारोप, चलाये जा रहे हैं। इस आरोप-प्रत्यारोप में सच और झूठ का फ़र्क़ मिट गया है। खबरों की विश्वसनीयता संदेहो के घेरे में रहती है। और इन संदेहो की आंच में भारतीय पत्रकार और मीडिया घराने भी जलने लगे हैं। शायद ही कोई मीडिया घराना हो, जिसपर पक्षपात का आरोप नहीं लगा हो। आरोप लगे भी क्यों नहीं, जब मीडिया घरानो का पक्षपात सबूत के साथ पकड़ लिया जाये। पत्रकारिता जगत लोकतंत्र में दो महत्वपूर्ण भूमिकाये निभाता है। पहला, लोक और सत्ता के मध्य का वो कड़ी बनना, जिससे लोकसत्ता का निर्माण हो सके। इसके लिए पत्रकार जनता और सत्ता के मध्य संवाद की दोतरफा धारा बनता है, जिसमे सत्ता तक जनसंवेदना पहुंच सके और जनता तक सत्ता संवाद। दूसरा, सत्ता पर प्रखर नजर रखना जिससे सत्ता की विषमताएं, दुर्गुण, निरंकुशता, इत्यादि नियंत्रण में रहे। इसीलिए, पत्रकारिता को लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का दर्जा प्राप्त है। परन्तु, जैसे निम्बू के साथ रहते रहते ...