संतोष पाठक सचिव CSRA एवं राजनीतिज्ञ भारत अनेकों कहानियों का संयोजन है| व्यक्ति और व्यक्तियों के समूहों की कहानियां हवाओं में तैरती रहती हैं| लेकिन भारत के ग्रामीण अंचलों के गद्य लेखन का जो रस अत्य्धीक प्रचलित रहा है वह विरह का है| बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के ग्रामीण अंचलों में बिरहा के गीत गाये जाते रहे हैं| बिरहा का मतलब ही विरह या विग्रह है, जिसके मूल में विस्थापन है| परदेशी, नौकरी-हा (नौकरी करने वाले) जैसे शब्द लगभग सभी सामजिक समूह की कहानी है| ग्रामीण भारत से जो भीड़ उखड़ी, वही शहरों में परदेशी या नौकरी-हा हो गयी है| इस समूह के परिचय में कोई ख़ास तबका या जाति समूह के लोग नहीं है, वस्तुतः समाज के वे संभ्रांत लोग जिन्हें जिंदगी से ज्यादा की अपेक्षा है, वो विस्थापित हो गए और वो भी जिनके पास विस्थापन के अलावा कोई अन्य विकल्प उबलब्ध नहीं था| गंगा जैसी नदी तथा खेती हेतु उपजाऊं जमीन उपलब्ध होने की वजह से उत्तर प्रदेश, बिहार मुख्यतः कृषि आधारित रहे और यहाँ की जनसँख्या भी तेजी से बढ़ी, परन्तु पूरी जनसँख्या जमीन की प्रचुरता के वावजूद उस पर आधारित नहीं रह सकती जो विस्थापन की मौल...